तुला दान क्या है? कब और क्यों करना चाहिए | Tula Daan kab or kyun karna chahiye ?

तुलादान से होता है कल्याण, जानें तुलादान का धार्मिक महत्व और नियम

हमारी सनातन परंपरा में दान (Daan) का बहुत महत्व है। कलयुग में कल्याण और मोक्ष की चाह रखने वालों को आखिर किस चीज का करना चाहिए दान? सभी दान (Donation) में तुलादान (Tula Daan) का महत्व और उसकी विधि को जानने के लिए आगे पढ़ें…
हमारी सनातन परंपरा में तीन प्रकार के दान का वर्णन है,
1. नित्य दान- बगैर किसी फल की इच्छा के परोपकार हेतु दिया जाता है,
2. नैमित्तिक दान- नैमित्तिक दान जाने-अंजाने में किए पापों से मुक्ति पाने के लिए, और
3. काम्य दान- काम्यदान तमाम तरह की कामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।
इन तीनों दान के अंतर्गत भी कई प्रकार के दान आते हैं, जैसे – कन्यादान, विद्यादान, अन्नदान, तुलादान आदि। 
तुलादान (Tula Daan) के बारे में विस्तार से जानते हैं…

तुला दान कब और क्यों करना चाहिए | Tula Daan kab or kyun karna chahiye ?

तुला दान क्या है ? | What is TulaDaan ?

हमारी सनातन संस्कृति में पुण्य प्राप्त करने मे तुलादान का ​बहुत ज्यादा महत्व है। किसी भी मनुष्य के शरीर के भार के बराबर दान करने का महत्व बताया गया है। इस दान का महत्व तब और बढ़ जाता है जब इसे किसी विशेष पर्व पर पवित्र नदी में स्नान करने के बाद किसी तीर्थ स्थान पर किसी योग्य व्यक्ति को दान किया जाता है। तुला दान को हमेशा शुक्ल पक्ष में रविवार के दिन करना चाहिए। तुलादान में नवग्रह से जुड़ी सामग्री दान करने पर नवग्रहों से जुड़े दोष भी दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि तुलादान को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और वह सभी सुखों को भोगता हुआ अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता है।  

कैसे शुरु हुआ तुलादान ? | How did TulaDaan start ?

तुलादान बारे में मान्यता है कि भगवान विष्णु के कहने पर ब्रह्मा जी ने तीर्थों का महत्व तय करने के लिए तुलादान करवाया था। हालांकि इसके पीछे भगवान कृष्ण की एक कथा भी आती है, कहते हैं कि एक बार सत्यभामा ने भगवान श्रीकृष्ण पर अपना एकाधिकार जमाने के लिए महर्षि नारद को दान में दे दिया। जब नारद मुनि भगवान श्री कृष्ण को ले जाने लगे तो सत्यभामा को अपनी इस भारी भूल का अहसास हुआ, तब उन्होंने दोबार से भगवान श्री कृष्ण को पाने का उपाय पूछा तो नारद मुनि ने उन्हें भगवान कृष्ण का तुलादान करने को कहा। इसके बाद तराजू में एक तरफ भगवान श्रीकृष्ण और दूसरी तरफ आभूषण, स्वर्णमुद्राएं, अन्न-धन  आदि रखा गया परन्तु भगवान कृष्ण का पलड़ा नहीं ​उठा! इसके बाद रुक्मणी ने सत्यभामा को दान वाले पलड़े में एक तुलसी पत्र रखने को कहा। सत्यभामा ने जैसा तुलसी का पत्ता रखा, दान वाला पलड़ा भगवान श्रीकृष्ण के पलड़े के बराबर हो गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने तुलादान को महादान बताया। जिसके करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

 

तुला दान कब करना चाहिए? When should tula Daan ?

जब किसी भी व्यक्ति के जीवन में मारक मार्केश की दशा चल रही हो। मारक मार्केश ऐसा समय है जब व्यक्ति का अगर आयु खंड पूर्ण हो गया हो तो उसे मृत्यु प्राप्त होती है और अगर ना हुआ हो तो उसे मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होता है। मृत्यु तुल्य कष्ट से बचाने के लिए उन्हें तुला दान करने की सलाह देते हैं जो कि बिल्कुल आवश्यक भी है ऐसा करने से आपके दुख दर्द कम हो जाते हैं।
घर में निरंतर कोई ना कोई व्यक्ति बीमार रहता है या उसके घर से बीमारी कभी दूर जाती ही नहीं, तब भी तुला दान करने की सलाह दी जाती है।
जितना भी हमारा वजन है उतने ही वजन का अन्य तौल कर ब्राह्मणों को या किसी जरूरत मंद को दान दे देना चाहिए और मन से संकल्प करना चाहिए कि मैं यह दान अपनी सुरक्षा के लिए दे रहा हूं और प्रभु से यह अनुग्रह करें कि वह आपके सभी कष्ट दूर करें।

 

कैसे करें तुला दान | How to do TulaDaan

तुलादान करने के लिए नवग्रह से जुड़े अनाज को या फिर सतनजा (गेहूं, दाल, चावल, ज्वार, मक्का, बाजरा, सावुत चना) दान कर सकते हैं। इसके अलावा आप चाहें तो आप अपने भार के बराबर हरा चारा तोलकर, रविवार के दिन किसी गोशाला में दान कर सकते हैं। इसकी जगह आप चाहें तो आप पक्षियों को डाले जाने वाले अनाज का तुलादान कर सकते हैं और उसे प्रतिदिन पक्षियों को खाने के लिए डाल सकते हैं। तुला दान करने का दूसरा सबसे सरल तरीका यह है कि आपका जितना भी वजन है आप उतने ही वजन का हरा चारा तौल लीजिए और जाकर कहीं पास की गौशाला में दान कर दीजिए जिससे आपके कर्म तो अच्छे होंगे ही साथ ही साथ आपके जीवन में चल रही समस्याओं का निवारण भी हो सकेगा।

Leave a Comment