शिव पूजन में ध्यान रखने मुख्य बातें | Shiv Pooja me Dhyan Rakhne Yogya Mukhya Baaten

शिव पूजन में ध्यान रखने मुख्य बातें

किसी भी देव पूजन में मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध तो होना ही पड़ता है, यदि सम्भव हो और कठिनाई न हो तो पूजा करने वाले को सिले हुए वस्त्र पहने हुए नहीं होना चाहिए। आसन शुद्ध होना चाहिए। पूजा के समय पूर्व या उत्तर मुख बैठ जाना चाहिए। संकल्प किया जाना चाहिए। शिव-पूजन के लिए निम्न बातों पर विशेष ध्यान ” दिया जाना चाहिए:-

  1. भस्म, त्रिपुण्ड और रुद्राक्ष माला – ये शिव पूजन के लिए विशेष सामग्री है जो पूजक के शरीर पर होनी चाहिए।

  2. भगवान शंकर की पूजा में तिल का प्रयोग नहीं होता और किसी भी चम्पा का पुष्प नहीं चढ़ाया जाता।

  3. शिव की पूजा में भी दूर्वा(दूब), तुलसी – दल चढ़ाया जाता है- इसमें सन्देह नहीं किया जाना चाहिए। तुलसी की मंजरियों से पूजा अधिक श्रेष्ठ मानी जाती है। 

  4. शंकर जी के लिए विशेष पुष्प और पत्र में बिल्व पत्र प्रधान है, किन्तु बिल्व पत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए। बिल्व पत्र में कीड़ों के द्वारा बनाया हुआ जो सफेद चिन्ह होता है उसे चक्र कहते हैं और बिल्व पत्र के डण्ठल की ओर जो थोड़ा सा मोटा भाग होता है वह वज्र कहा जाता है। वह भाग तोड़ देना चाहिए। कीड़ों से खाया हुआ, कटा फटा बिल्व पत्र भी शिव पूजा के योग्य नहीं होता। आक का फूल, धतूरे का फल भी शिव पूजा की विशेष सामग्री है, किन्तु सर्वश्रेष्ठ पुष्प हैं नीलकमल का । उसके अभाव में कोई भी कमल का पुष्प भगवान शंकर को बहुत प्रिय है। कुमुदिनी – पुष्प अथवा कमलिनी-पुष्प का प्रयोग भी शिव पूजा में होता है। बिल्व पत्र चढ़ाते समय बिल्व पत्र का चिकना भाग मूर्ति की ओर रहे – इस प्रकार चढ़ाया जाना चाहिए।

  5. बिल्व पत्रों में तीन से लेकर ग्यारह दलों तक के बिल्व पत्र प्राप्त होते हैं। ये जितने अधिक पत्रों के हों, उतना ही उत्तम माना जाता है, किन्तु यदि तीन में से कोई दल टूट गया हो तो वह बिल्व पत्र चढ़ाने योग्य नहीं है।

  6. तुलसी और बिल्व पत्र सर्वदा शुद्ध माने जाते हैं। ये बासी नहीं होते। कुन्द, तमाल, आँवला, कमल-पुष्प, अगस्त्य पुष्प – ये भी पहले दिन तोड़कर लाए हुए दूसरे दिन उपयोग में आते हैं। एक दिन में इनको बासी नहीं माना जाता है।

  7. भगवान शंकर के पूजन के समय करताल नहीं बजाया जाता।

  8. शिव की परिक्रमा में सम्पूर्ण परिक्रमा नहीं की जाती। जिधर से चढ़ा हुआ जल निकलता है उस नाली का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। वहाँ ये प्रदक्षिणा उल्टी की जाती है।

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