गीता-महिमा | Geeta-Mahima

गीता-महिमा | Geeta-Mahima

गीता हृदय भगवान् का सब ज्ञान का शुभ सार है।
इस शुद्ध गीता ज्ञान से ही चल रहा संसार है॥

गीता परमविद्या सनातन सर्वशास्त्र प्रधान है।
परब्रह्म रूपी मोक्षकारी नित्य गीता-ज्ञान है॥

यह मोह माया कष्टमय तरना जिसे संसार हो।
वह बैठ गीता नाव में सुख से सहज में पार हो॥

संसार के सब ज्ञान का यह ज्ञानमय भंडार है।
श्रुति, उपनिषद्, वेदान्त-ग्रन्थों का परम शुभ सार है॥

गाते जहाँ जन नित्य हरिगीता निरन्तर नेम से।
रहते वहीं सुख-कन्द नटवर नन्द-नन्दन प्रेम से॥

गाते जहाँ जन गीत-गीता प्रेम से धर ध्यान हैं।
तीरथ वहीं भव के सभी शुभ शुद्ध और महान हैं॥

धरते हुए जो ध्यान, गीता-ज्ञान का तन छोड़ते।
लेने उसे माधव मुरारी आप ही उठ दौड़ते॥

सुनते-सुनाते नित्य जो लाते इसे व्यवहार में।
पाते परम-पद ठोकरें खाते नहीं संसार में॥

पारस रूप विशेष, लोह बने सोना छुए।
गीता-ज्ञान ‘दिनेश’, संसृति-सागर सेतु है॥

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