आरती श्री काली माता जी की | Aarti Shri Kali Mata Ji

आरती श्री काली माता जी की

“मंगल” की सेवा, सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।


“मंगल” की सेवा, सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान-सुपारी, ध्वजा-नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे॥
सुन जगदम्बे कर न बिलंबे, संतनके भंडार भरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ॥१॥ टेक

“बुद्धि” विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे।
चरण-कमलका लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे ॥
जब-जब भीड़ पड़े भक्तनपर तब-तब आय सहाय करे।
संतन प्रतिपाली… ॥२॥

“गुरु” के बार सब जग मोह्यो, तरुणीरुप अनूप धरे।
माता होकर पुत्र खिलावै, कहीं भार्या भोग करे ॥
“सब” सुखदाई सदा सहाई, संत खड़े जयकार करे।
संतन प्रतिपाली… ॥३॥

ब्रह्मा विष्णु महेस फूल लिये। भेंट देन तेरे द्वार खड़े।
अटल सिंहासन बैठी माते, सिर सोनेका छत्र धरे।।
वार “शनिचर” कुंकुम वरणी, जब लुंकड़पर हुकुम करे ।
संतन प्रतिपाली… ॥४॥

खड्ग खप्पर त्रिशूल हाथ लिये, रक्तबीज को भस्म करे।
शुंभ निशुंभ क्षणहिमें मारे महिषासुरको पकड़ दले।।
“आदित” वारी आदि भवानी जन अपनेका कष्ट हरे।
संतन प्रतिपाली… ॥५॥

कुपित होय कर दानव मारे, चण्ड मुण्ड सब चूर करे
जब तुम देखो दयारुप हो, पलमें संकट दूर करे ।।
“सोम” स्वभाव धरयो मेरी माता, जनकी अर्ज बकूल करे।
संतन प्रतिपाली… ॥६॥

सात बारकी महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे।
सिंहपीठपर चढ़ी भवानी, अटल भवनमें राज करे ।।
दर्शन पावें मंगल गावें सिध साधक तेरी भेंट धरे
संतन प्रतिपाली… ॥७॥

ब्रह्मा वेद पढ़ें तेरे द्वार, शिवशंकर हरि ध्यान करें।
इन्द्र कृष्ण तेरी करें आरती, चंवर कुबेर डुलाय करे ।।
जय जननी जय मातु भवानी अचल भवनमें राज्य करे।
संतन प्रतिपाली… ॥८॥

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