शिव निर्माल्य
भगवान शंकर पर चढ़ा हुआ प्रासद ग्रहण किया जाय या नहीं- इस सम्बन्ध में बहुत मति-भ्रम है। शिव के प्रसाद में चण्ड का भाग होता है। भगवान् महेश्वर के मुख-तेज से प्रकट चण्डेश्वर उनके प्रेतगणों में प्रधान हैं, इसलिए उनका प्रसाद ग्राह्य नहीं होता- यह बात ठीक है। किन्तु कौन सा प्रसाद चण्डका भाग है और कौन सा उनका भाग नहीं है- यह बात विचार कर लेनी चाहिए क्योंकि प्रसाद के त्याग में भी बहुत बड़ा दोष शास्त्रों में वर्णित है।
- जहाँ कहीं भगवान् शंकर की साकार मूर्ति (हाथ-पैर वाली) बनी हो, उसका प्रसाद ग्रहण किया ही जाना चाहिए। दूसरे देवताओं के प्रसाद के समान वह पवित्र है।
- किसी भी धातु से बने हुए शिव-लिंग के ऊपर चढ़ा हुआ प्रसाद सर्वथा पवित्र है, वह ग्रहण करने योग्य है। यदि किसी दूसरी वस्तु से बना शिवलिंग हो और उसके ऊपर धातु का कलेवर चढ़ा हो, जैसा कि अनेक स्थानों में है, तो उस पर चढ़ा हुआ प्रसाद भी पवित्र होता है।
- जो प्रसाद शिव लिंग के ऊपर नहीं चढ़ा है, सामने रखकर भोग लगाया गया है वह प्रसाद पवित्र है, उसे ग्रहण किया जाना चाहिए।
- द्वादश ज्योतिर्लिंग, अष्ट उपलिंग तत्वलिंग, स्वयंभू लिंग (जो स्वयं प्रकट हुए हैं), किसी साधु महापुरुष के द्वारा स्थापित लिंग और नर्मदा के जल में से प्राप्त हुआ बाणलिंग (नर्मदेश्वर) इनके ऊपर चढ़ा हुआ प्रसाद भी पवित्र होता है इसमें चण्डका कोई भाग नहीं होता, इसलिए इसके त्याग में ही दोष है।
- अब ऊपर के सब प्रकार के शिवलिंगों को छोड़ दें तो साधारण पत्थर से गढ़े हुए लिंग, नर्मदा के अतिरिक्त किसी दूसरी नदी में से प्राप्त लिंग या मूर्ति अथवा केशर के अतिरिक्त दूसरे पदार्थों से बने मिट्टी, चिनी आदि के शिवलिंगो पर जो प्रसाद चढ़ाया गया हो, उसे किसी को भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इसे मन से चण्ड को अर्पित करके किसी जलाशय में डाल दिया जाना चाहिए।
- केशर-चन्दन मिला करके जो लिंगमूर्ति बनती है, उस पर चढ़ा हुआ प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
- यदि शिवलिंग गण्डकी नदी में पाया गया हो अथवा शिवलिंग के समीप शालिग्राम भी विराजते हों तो शिवलिंग पर चढ़ा हुआ प्रसाद ग्रहण करने योग्य है।
- किसी भी शिवलिंग पर चढा हुआ प्रसाद यदि शालिग्रामजी को स्पर्श करा दिया जाता है तो वह ग्रहण करने योग्य है।
• जो पदार्थ उन सिवलिंगों के ठीक ऊपर रख दिया गया है जिनका प्रसाद ग्रहण करना यहाँ वर्जित बतलाया गया है, केवल प्रसाद का उतना ही अंश त्याज्य है। किसी पत्ते पर अथवा बर्त्तन में मूर्त्ति से थोड़ा दूर रखकर जो भोग लगाया जाता है वह किसी भी शिव- लिंग को लगाया हुआ प्रसाद ग्रहण करने योग्य है।
• भगवान शंकर की लिंग-मूर्ति पर चढ़ाया हुआ प्रसाद, चाहे वह किसी भी लिंग पर चढ़ाया हो, शालिग्राम जी को अर्पित किया जा सकता है; क्योंकि भगवान् विष्णु परम शैव हैं और वैसे ही शिव का प्रसाद ग्रहण करते हैं जैसे हनुमान जी श्री रघुनाथ जी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। अतएव शिव-लिंग पर चढ़ा हुआ प्रसाद शालिग्राम जी को अर्पित करके ग्रहण करने योग्य हो जाता है क्योंकि फिर वह भगवान् विष्णु का प्रसाद होता है।