भाई रहा तो, लड़-झगड़ तो फिर भी लेंगे | प्रेरणादायक कहानियां

डॉक्टर साहब ने स्पष्ट कह दिया, “जल्दी से जल्दी प्लाज्मा डोनर का इंतजाम कर लो, नहीं तो कुछ भी हो सकता है।”
रोहन को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। माँ फफक- फफक कर रो रही थीं।
और
सामने बेड पर थे बाबूजी, जो बेहद ही सीरियस थे। सब जगह तो देख लिया था, सबसे गुहार कर ली थी, लेकिन बी-पॉजिटिव प्लाज्मा का कोई इंतजाम ही नहीं हो रहा था।

वैसे तो बी-पॉजिटिव प्लाज्मा तो उनके घर में ही था, रोहन के चाचा अभी 2 माह पहले ही कोविड को हराकर लौटे थे। लेकिन चाचा जी से कहे, तो कैसे?

अभी 15 दिन पहले ही, जब चाचा जी ने बगल वाले प्लॉट में काम लगाया था तो बाबूजी ने मात्र 6 इंच जमीन के विवाद में भाई को ही जेल भिजवा दिया था। ऐसे में चाचा जी शायद ही प्लाज्मा डोनेट करें! खैर!! एक बार फिर माता जी को बाबूजी के पास छोड़कर शहर में चला प्लाज्मा तलाशने।

दोपहर बीत गई, रात होने को आई, कोई डोनर नहीं मिला। थक-हार कर लौट आया और माता जी से चिपक कर फूट-फूट कर रोने लगा, माताजी कोई डोनर नहीं मिल सका है। तब तक देखा कि चाचा जी बाबूजी के बेड के पास बैठे हैं। कुछ बोल नहीं पाया। चाचा जी खुद ही रोहन के पास आए, सिर पर हाथ-फेर कर बोले, “तू नहीं बताएगा तो मुझे पता नहीं चलेगा, जो तेरा बाप है, वो मेरा भी भाई है, प्लाज्मा दे दिया है, पैसों की या फिर किसी मदद की जरूरत हो तो बेहिचक बताना।

“भाई रहा तो लड़-झगड़ तो फिर भी लेंगे।”

चाचा जी आँसू पोंछते जा रहे थे और सैलाब रोहन की आँखों में था, कुछ बोल नहीं पाया, सिर्फ़ चाचा जी के पैरों से लिपट गया।

नोट :-
साथियों !! संकट का समय है। घर, परिवार, मोहल्ले में थोड़ा मन-मुटाव तो चलता है, लेकिन इस आपदा के समय सारे गिले-शिकवे भूलकर मदद के लिए तत्पर रहें, जिससे जो बने, सो करें।
साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना।
एक अकेला फँस जाए तो मिलकर ढाढ़स बंधाना।

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