रामा रामा रटते रटते,
बीती रे उमरिया।
रघुकुल नन्दन कब आवोगे,
भिलनीकी डगरिया ॥ टेर ॥
रामा रामा रटते रटते…
मैं शबरी भिलनी की जाई,
भजन भाव नहीं जानूँ रे।
राम तुम्हारे दरसन के हित,
वन में जीवन पालूँ रे।
चरण कमल से निर्मल करदो,
दासी की झोपड़िया ॥१॥
रामा रामा रटते रटते…
सुबह शाम नित उठकर मैं तो,
चुन चून कर फल लाऊंगी।
अपने प्रभु के सन्मुख रख के,
प्रेम से भोग लगाऊंगी।
अपने प्रभु के दर्शन करने,
तरसे यह नजरिया ॥२॥
रामा रामा रटते रटते…
रोज सबेरे वन में जाकर,
रस्ता साफ करती हूँ।
अपने प्रभु के खातिर वन से,
चुन-चुन के फल लाती हूँ।
मीठे-मीठे बेरन से भर,
ल्याई मैं छबड़िया ॥३॥
रामा रामा रटते रटते…
सुन्दर श्याम सलोनी सूरत,
नैनन बीच बसाऊँगी।
पद पंकज की रज धर मस्तक,
चरणोंमें सीस नवाऊँगी।
प्रभुजी मुझको भूल गये क्या,
ल्यो दासीकी खबरिया ॥४॥
रामा रामा रटते रटते…
नाथ तुम्हारे दरसन के हित मैं,
अबला एक नारी हूँ।
दर्शन बिन दोउ नैना तरसे,
दिलकी बड़ी दुख्यारी हूँ।
मुझको दर्शन देवो दयामय,
डालो मेहर नजरिया ॥५॥
रामा रामा रटते रटते…