श्री श्याम अखंड ज्योति पाठ | Shri Shyam Akhand Jyoti Path

॥श्री गणेशाय नमः॥

“अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥”


पुण्य भूमि भारत विश्व का वह स्थल है जहां जन्म लेने के लिए स्वर्ग देवता भी लालायित रहते हैं। उस जीव के भाग्य का तो कहना ही क्या जिसने इस पवित्र भूमि पर जन्म लिया है । देवापगा भागीरथी गंगा जहां अमृत सींचती है-निर्मल जल वाली यमुना जहां निरन्तर श्याम गुण गाती हुई बहती है । इन्हीं के किनारों पर जगह-जगह पुण्यात्माओं की तपःस्थलियां हैं। जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य कल्याण का भागी होता है । इन्हीं तीर्थों से समय-समय पर उस कल्याणकारी परम तत्त्व का ज्ञान प्रस्फुटित होता है, जिसकी प्राप्ति मनुष्य जन्म का परम पुरुषार्थ है । भवाटवी में भटकते मुझ अधम पर भी अहैतुकी कृपालु श्री श्याम बाबा के परम भक्त स्व० अनन्त विभूषित श्री सांवलराम जी (सूरजगढ़ निवासी) की कृपा दृष्टि हुई। श्री श्याम तत्त्व से उपदेशित किया ।

हर वर्ष फाल्गुन मास की एकादशी को श्याम बाबा की निशान यात्रा पूज्य गुरु महाराज के साथ प्रारम्भ हो गई। नित्य निरन्तर श्याम प्रेम बढ़ता गया, सर्वप्रथम सम्वत् २०१५ में बाबा के निज-खाटू धाम पहुँचा। झांकी दर्शन का अपूर्व सौभाग्य प्राप्त किया। अब तो वह झांकी रोम रोम में बस गई। घन्टों बाबा के श्री चरणों में, उनकी दिव्य-विग्रह झांकी को देखने में लीन रहता। खान-पान की कोई नियमित स्थिति नहीं रह गई। घर बार तो क्या तन की भी उन दिनों कोई सुध-बुध नहीं रह गई था। सम्वत् २०२१ तक इसी स्थिति में इन्हीं बाबा श्याम देव के कृपानुग्रह की आकांक्षा में जहां-जहां भी बाबा के लीला वैचित्र्य को सुनता-वहीं पहुंचता। भगवान शंकर की निज नगरी काशी के दर्शन भी इसी श्याम तत्त्व की कृपा से अनायास हुए। वहां मन स्वाध्याय में लगा। श्रीमदभागवत, पंचम वेद, महाभारत, रामायण आदि ग्रन्थों के पारायण श्री श्याम बाबा की कृपा से ही हुए। ज्यों-ज्यों अध्ययन बढ़ता गया। श्री श्याम तत्त्व के प्रति जिज्ञासा तीव्र होती गई।

महाकवि बिहारी के कथनानुसार वही हालत हुई:-
“या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोय । ज्यों ज्यों बढ़े श्याम रंग त्यों त्यों उज्जवल होय॥”

अपूर्व आनन्दाभास आनन्द की ओर बढ़ता रहा। एक विशेष प्रकार की आकुलता मन में हर वक्त रहती “बाबा तू कहां है?” इसी अवस्था में चलते-चलते गुरु महाराज की कृपा प्रसाद से श्यामकुण्ड (खाटू धाम) पहुंचा। श्री श्याम-कुण्ड की अपूर्व शोभा को देखकर तन-मन पुल्कित हो गया। श्री श्याम-कुण्ड की पवित्र जलधारा में स्नान करने के बाद वहीं का होकर रह गया। बाबा के अपूर्व गुणानुवाद गाने की बारम्बार इच्छा होने लगी। लेखन सम्बन्धी सफुरणाएं अन्तर को आलोकित करने लगीं। यदा कदा अस्पष्ट-सा भान होता मानो कोई आवाज आ रही है और एक दिन श्याम-धणी की इच्छा से अनायास ही कागज-कलम का संयोग प्राप्त हुआ। वही आवाज कागज पर अंकित होना प्रारंभ हो गई :-

“अखण्ड ज्योत है अपार माया। श्याम देव की परबल छाया॥”

श्री श्याम बाबा की दिव्य अवतार कथा का गान प्रारम्भ हो गया। आवाज़ आती गई- लेखनी बढ़ती गई। श्री श्याम कुण्ड पर ४१ दिन के प्रवास में ‘अखण्ड ज्योत पाठ’ ग्रन्थ के रूप में तैयार हो गया। श्री श्याम बाबा के इस लीला वैचित्र्य से अनुगृहित हो धन्य हुआ। निशान यात्रा का समय नजदीक आ रहा था। इस दिव्य मौलिक को गुरु चरणों में समर्पित करने के लिए मन आकुल हो उठा। यह आकुलता भी इन्हीं बाबा श्याम देव की कृपा थी। गुरु महाराज की आज्ञा-जिनका है उन्हीं को सुनाने का आदेश हुआ। इस प्रकार सर्व प्रथम श्री श्याम बाबा की दिव्य-अवतार कथा मौलिक उन्हीं के निजधाम खाटू धाम में उन्हीं के समक्ष बैठकर “अखण्ड ज्योत पाठ” के रूप में समर्पित किया। इसके बाद तो समस्त भारत में “अखण्ड ज्योत है अपार माया-श्याम देव की परबल छाया” का गुंजार होने लगा। श्री श्यामानुरागी प्रेमी भक्तों के घर-घर में इसका विधिवत् पारायण होने लगा। चारों प्रकार के भक्तों की यथाभिलाषित कामनाओं की पूर्ति होने लगी। अनेक माताओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति, धन हीनों को धन एवं ज्ञानियों के ज्ञान तो श्री श्याम बाबा हैं ही। संशय-भ्रम के अन्धकार का नाश तो पाठ मात्र से होने लगा।

इस विकराल कलिकाल में यज्ञानुष्ठान बहुत ही कष्ट साध्य है । उनका भली प्रकार सम्पन्न होना आजकल आकाश दीप के समान है। ऐसे कठिन समय में “अखण्ड ज्योत पाठ” ही भौतिक पाप-तापों के निवारण का अमोघ अस्त्र है। क्योंकि “कलियुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा ।। ” कलि कल्मष हरण, शीश के दानी, परम कारुणिक बाबा के भजन-स्मरण कीर्तन ही वर्तमान में हमारा उद्धार कर सकते हैं। यह “अखण्ड ज्योत पाठ” इन्हीं अवढर दानी बाबा श्याम देव का कृपा प्रसाद है।

देश के अनेक प्रेमी भक्तों ने नियमानुसार इस “अखण्ड ज्योत पाठ” के पारायण किये और उचित फलों की प्राप्ति की। सकाम भक्तों को “अखण्ड ज्योत पाठ” के पारायण से बाबा श्यामदेव की कृपा के रूप में कामनाओं की पूर्ति सुलभ हुई। निष्काम आराधक तो श्याम धणी से सायुज्य प्राप्त कर कृतकृत्य होते हैं। पारायण काल में अनुभव में आने वाले अद्भुत चमत्कारों का वर्णन करना तत्त्व को दूषित करना ही होता है। बाबा श्यामदेव के प्रेमी भक्तों को चाहिये कि वे स्वयं इसका पारायण कर प्रत्यक्ष अनुभव करें। और अन्त में-

श्री श्याम प्रेमी भक्तों को चाहिये कि वे नियमानुसार तत्परता श्रद्धा एवं निष्ठापूर्वक इसका पारायण स्वयं करें या श्याम प्रेमी के द्वारा करवायें और अचिंत्य लाभ प्राप्त करें। आवश्यकता है केवल आलस्य त्याग श्रद्धापूर्वक पूर्ण निष्ठा सहित “अखण्ड ज्योत पाठ” प्रारम्भ करने की। जी हां माता-पिता, गुरु–गणेश स्मरण कर परम विश्वास पूर्वक प्रारम्भ कीजिये। लाभ अवश्य होगा।

“अखण्ड ज्योत है अपार माया, श्याम देव की परबल छाया॥”


पूजन विधि

श्री श्याम देव दयालु का हर महीने में शुक्ला एकादशी-द्वादशी को पूजन होता है । श्री श्याम देव के सेवक एकादशी का व्रत कर रात्रि को जागरण (राती जगा दें) द्वादशी को प्रातः दीपक से अग्नि पर ज्योत लें, खीर चूरमे का भोग लगा मन इच्छा फल पाते हैं । दयालु देव की द्वादशी की ज्योत का महान महत्व है । प्रतिदिन श्री श्याम बाबा के सेवक अपने घर संध्या दीया बाती के समय प्रथम श्री श्याम बाबा का दीपक जलाते हैं । द्वादशी के अलावा अग्नि पर ज्योत नहीं हो सकती, साधारण दिन ज्योत करना श्री श्याम बाबा की मर्यादा का उल्लंघन है ।

सात नियम:
१. कथा पठन व श्रवण करने से पहले शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखें । जहां अखण्ड ज्योत का पाठ होगा, श्री श्यामधणी निश्चित आवेंगे । प्रतिदिन एक पाठ पढ़ने से सात दिन में सम्पूर्ण होगा।

२. श्री श्याम देव का ध्यान रखकर शुद्ध घी के अखण्ड दीप के सम्मुख अपनी आवश्यक मनोकामना तीन बार दोहराओ और अखण्ड पाठ शुरू करो । पाठ सम्पूर्ण होने तक जल के सिवा और कुछ ग्रहण मत करो, कार्य सिद्ध होगा ।

३. मन्दिर या सार्वजनिक स्थान पर अखण्ड ज्योत पाठ ब्राह्मण के मुखारविन्द से सपरिवार सुनो, अखण्ड दीप की आवश्यकता नहीं ।

४. जिस वंश के श्री श्याम धणी कुल के देव हैं उनको सम्वत् २०२१ कार्तिक शुक्ला ११ से अनिवार्य हो गया है कि वे समस्त परिवार मिलकर किसी एक के घर पर ब्राह्मण के द्वारा अखण्ड ज्योत पाठ करावें, समस्त परिवार सम्मिलित हो प्रतिदिन श्रवण करें, अखण्ड दीप रखें और सामूहिक होकर दीपक में घृत डालें, ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा दें । पाठ सम्पूर्ण होने पर श्रद्धा अनुसार दान करें। हर तीन साल में एक बार पाठ होना जरूरी है ।

५. रोगी व मृत्यु शैया पर पड़े प्राणी के सन्मुख ज्योत पाठ घर का सदस्य करे, कष्ट शीघ्र दूर होगा।

६. प्रतिदिन अखण्ड ज्योत का पाठ करने वाले नर-नारी जब तक पाठ करें तब तक धूप दीप का प्रयोग करें, तीन साल में वचन सिद्ध होगा । श्री श्याम बाबा का हुक्म सुनने लगेगा । (नोट : प्रति दिन एक अध्याय का पाठ भी कर सकते हैं ।)

७. लेखक को पाठ पर चढ़ाया दान लेने का हक नहीं है, इनाम ले सकता है। ये सात वचन श्री श्याम बाबा के अटल हैं ।

जय श्री श्याम
मा सैव्यम् पराजितः


भजन

नन्हा सा फूल हूँ मैं, चरणों की धूल हूँ मैं,
आये हैं हम तो तेरे द्वार, प्रभु जी मेरे, पूजा करो स्वीकार ॥
प्रभु जी मेरे… ॥टेक॥

मैं तो निर्गुणिया, बस इतनी बात है,
मेरी जीवन की डोरी, अब तेरे हाथ है,
थोड़ा सा गुण मिल जाये, निर्धन को धन मिल जाये,
मानूँ तुम्हारा उपकार॥
प्रभु जी मेरे… ॥1॥

सुनलो हमारी अर्जी, मुझको कुछ ज्ञान दो,
जीवन में जीना सीखूँ, ऐसा वरदान दो,
सूरज सा शान पाऊँ, चन्दा सा मान पाऊँ,
भक्तों को दे दो ये उपहार॥
प्रभु जी मेरे… ॥2॥


प्रथम पाठ

श्री गणेश स्तुति
दोहा-
गणपति जी से अर्ज है, सुनियो मेरी पुकार।
देवन में अगवा तुम्हीं, बुद्धि के भण्डार॥

प्रथम मनाऊँ शीश निवाऊँ।
गणपति जी के मैं गुण गाऊँ॥
बल बुद्धि के देने वाले।
कारज पूरण करने वाले॥
सूण्ड सूण्डाला, दून्द दून्दाला।
रिद्धि सिद्धि संग रखने वाला॥
मोर मुकुट पीताम्बर साजे।
हार गले में छन छन बाजे॥
मोदक अरु फल भोग लगाऊँ।
आवो विराजो चंवर दुलाऊँ॥
मूसे ऊपर करो सवारी।
दीन दुखी के तुम हितकारी॥
रक्षा करियो मेरे दाता।
हर कारज में पहले मनाता॥

 

श्री सरस्वती माता से प्रार्थना
दोहा-
जय-जय माता सरस्वती, मैं हूँ तेरा लाल।
तेरी गोद का लाडला, ममता मोहना बाल॥
विद्या देवी हे ब्रह्माणी।
तुम्हीं शारदा कमला राणी॥
तूं रुद्राणी वेद की ज्ञाता।
जय हो भवानी जय हो माता॥
दया को रूप तिहारो मोहे।
हाथ में वीणा अद्भुत सोहे॥
शीश मुकुट चम चम चमकीला।
गल में सोहे हार रंगीला॥
कर्ण बाली हीरे मोतियन की।
मीठी ध्वनि पायल छन-छन की॥
आओ मेरे दाहिने विराजो।
मेरे कारज सारे साजो॥
स्वर की दाता जय हो भवानी।
साज सजाओ मीठी वाणी॥

 

श्री गुरुदेव से प्रार्थना
दोहा –
श्री गुरुदेव सहाय हैं, जिनको करूं प्रणाम।
ज्ञान दियो बड़े प्रेम से, मिला दियो श्रीश्याम॥

गुरु हैं मेरे ज्ञान समुन्दर।
ज्ञान दीप के मोहरी चन्दर॥
अन्धकार में करें उजारा।
जीवन का (श्री) गुरु सहारा॥
सत पथ की मुझे राह बताई।
कृष्ण कला की ज्योति दिखाई॥
हर फागुण खाटू में आवें।
श्याम देव के ध्वजा चढ़ावें॥
शीतल हृदय ज्ञान भण्डारी।
कहते हैं रटो श्याम बिहारी॥
कलियुग में हैं देव अवतारी।
तीन बाण का शक्ति धारी॥
शीश का दानी और वरदानी।
महाभारत की कही कहानी॥

भजन
तर्ज बाबा सा री लाडली…

प्रेम भरी आवाज सांवरो सुनकर आयो जी।
अपने भक्त पर मेहर करी है दर्श दिखायो जी॥

श्याम बिहारी गिरवरधारी, नटवर कुंज बिहारी।
कृष्ण कन्हैया, खाटू बसैया देव रूप अवतारी॥
श्याम वरण लीले घोड़े पर चढ़कर आयो जी।
अपने भक्त पर मेहर करी है दर्श दिखायो जी॥

शीश मुकुट चमचम चमके सूरज लुमके जाये।
बैजन्ती माला की किरणें चन्दा से टकराये॥
पवन वेग सो चाल आय कर धीर बन्धायो जी।
अपने भक्त पर मेहर करी है दर्श दिखायो जी॥

हुयो उजालो, अजब निरालो, आयो देव मतवालो।
पाण्डव वंशी शीश को दानी अहिलवती को लालो॥
तीन बाण तरकस में शोभित सजकर आयो जी।
अपने भक्त पर मेहर करी है दर्श दिखायो जी॥

गुरु कृपा से आये दयालु श्याम देव अवतारी।
बार-बार चरणों में गिरकर लीनी है बलिहारी॥
काया माया और जगती को भेद बतायो जी।
अपने भक्त पर मेहर करी है दर्श दिखायो जी॥

 

श्री श्याम देवाय नमः
श्रीश्यामदेव का परम धाम (राजस्थान) रींगस स्टेशन से १६ किलोमीटर दूर खाटू में हैं। इस नगरी का नाम खाटू क्यों पड़ा । इसका धाम किस शक्ति व धर्म से सुशोभित है, आदि वर्णन जो श्रीमदभागवत में पढ़ने से मालूम हुआ :-

दोहा :-
सूर्य वंश का लाडला, धर्म शक्ति का लाल।
खटयांग राजा सात्विक प्राणी, कियो राज सौ साल॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
पवित्र जल की नदी किनारे।
खटवांग राजा अब भी पुकारे॥
श्याम कुण्ड की धारा बहती।
नदी रूपावती अब भी रहती॥
रूपावती परलोक पहुँचाती।
मिट्टी भी सोना हो जाती॥
जब उस पर्व की धारा बहती।
दूध की लहरें उछल उछलती॥
राजा नित नहाण करता था।
संग रानी निश्चय रखता था॥
नगरी बीच शिवालय प्यारा।
राजा के जीवन का सहारा॥
नदी जल का नित कलश चढ़ावें।
खुद खेती कर भोग लगावें॥
न्यायपति और धर्म पुजारी।
जनता का था नित हितकारी॥
आज भी रूपावती की कहानी।
मीठा पानी अमर निशानी॥

दोहा:-
एक समय की बात है, जनता करी अरदास।
हम दर्शन के अभिलाषी हैं, आओ जलूस के पास॥
अनगिनती जनता खड़ी, राजा पहुंचे आय।
जय जयकार करी जनता ने, ध्वनि अम्बर गई छाय॥
रानी भी संग में खड़ी, देखे चारों ओर।
हार सिंगार देख जनता का, मनुआ हो गया चोर॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परवल छाया॥
रानी राजा जब महलों में आये।
रानी ने ये वचन सुनाये॥
मैं रानी और रूप की गोरी।
चन्द्र किरण सी चाँद चकोरी॥
हार सिंगार बिन आज उदासी।
व्याकुल हूँ इस बात की प्यासी॥
राजा अद्भुत वचन रानी के सुनकर।
राजा रह गये नीचे धुनकर॥
बोले राजा यह क्या माया।
आज तलक नहीं सुनने पाया॥
ऐसी वाणी कैसे सुनाई।
बिन मुँगार तू सजी सजाई॥
खेत से गुजर करूँ ये कमाई।
पास में एक भी नाहीं पाई॥
जनता का है राज खजाना।
नहीं ले सकते एक भी आना॥
आज मती तूने कैसी उपाई।
सोच रहा हूं समझ न आई॥

दोहा:-
रानी नैणां नीर भर, चरण लिपट गई आय।
हिलकी आये जोर से, हृदय धड़का खाय॥
कोली भर कर रानी की, राजा लई उठाय।
साँच बताओ ये क्या सूझी, कैसे गई मुरझाय॥


अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
रानी धीरज धर कर बोली।
आज तलक में रही थी भोली॥
जनता आपके हुक्म की चाकर।
आई है श्रृंगार सजाकर॥
मैं अभागिनी नहीं अनाथा।
बिन श्रृंगार क्यों सूना माथा॥
मैं नहीं मानूं एक भी बतियाँ।
बिन शृंगार कटे नहीं रतियाँ॥

दोहा:-
खटवांग जी कहने लगे, करले सोच विचार।
भजन में भंग पड़े रानी तो, कैसा ये श्रृंगार॥
आज मंगा दूंगा तुझे, सब सोलह श्रृंगार।
पर इस कर्म के भोग का, शीश पे आवे भार॥
लिखी पत्रिका दूत को, भेज दिया तत्काल।
कुबेर के नाम भेजा सन्देशा, वक्त न होवे टाल॥
पढ़ संदेश कुबेर जी, बोले मंद मुस्काय।
ले जाओ श्रृंगार पेटियां, समझ कछु नहीं आय॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
पहुंचे दूत खाटू नगरी में।
शृंगार भरा पेटी सगरी में॥
राजा आँख मूंद के बोले।
महल पहुँचाओ रानी खोले॥
रानी देख श्रृंगार सुहाना।
मस्त होय गाने लगी गाना॥
बाल बाल में मोती पोये।
हार गले का तन पर सोहे॥
चम चम चम चमकीली बनकर।
महलाँ उतरी छन छन छनकर॥
तेज किरण श्रृंगार है चमके।
गगन का चन्दा भू पे दमके॥
रूपावती नदी जहां बहती थी।
ब्राह्मण जाति अधिक रहती थी॥
देख के ब्राह्मण समझ न पाये।
ये चन्दा क्यों उधम मचाये॥

दोहा:-
अमावस आई सोमावती, कई दिनों के बाद।
शिव के कलश चढ़ाने, चल दिये राजा रानी साथ॥
कच्ची मिट्टी का घड़ा, नदी में दिया डुबोय।
राजा का तो स्वर्ण हुआ, रानी का गया खोय॥
चौंक पड़ी रानी तभी, किन कर्मों का भोग।
राजा का उपदेश है, यह शृंगार का जोग॥
राजा ने अपना घड़ा, शिव के दिया चढ़ाय।
वही शिवालय अब भी अटल है, सुनियो चित्त लगाय॥
खाटू नगरी बीच में, शिवजी रहे विराज।
श्याम देव जी यहीं विराजें, सबके सारें काज॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परवल छाया॥
नदी रूपावती की जल धारा।
श्याम कुण्ड है एक किनारा॥
खटवांग राजा की बस्ती में।
बीच में बहती पुण्य हस्ती में॥
पहले ये धरती पर लहरी।
अब धरती की गोद में बह रही॥
जो प्राणी उस जल में नहाता।
देह संग वो परलोक को जाता॥
धर्मराज ने मता उपाया।
लक्ष्मीपति के पास में आया॥
हाथ जोड़ कर अर्ज गुजारी।
कलियुग आयेगा त्रिपुरारी॥
रूपावती में सभी नहाकर।
उधम करेंगे पापी आकर॥
उसका कोई उपाय सुनाओ।
सेवक को सब भेद बताओ॥

दोहा :-
नारद जी खड़े पास में, धर्मराज कहे बात।
मुस्करा कर बोले हरि, इस जगती के नाथ॥
कलियुग में रूपावती, धरती जावे समाय।
जो प्राणी सत धर्म पुजारी, उनको ही मिल जाय॥
द्वापर युग में कृष्ण रूप, धर्म की राखे लाज।
सोलह कला अवतार धर, भक्त के सारें काज॥
कलियुग में भी वही कला, श्री श्याम देव के नाम।
देव रूप में प्रगट होवेगी, इसी रूपावती धाम॥

जिस स्थान पर श्री श्याम देव जी प्रगट हुए उसका संक्षेप में वर्णन विशेष कथा के अना में पढ़िये। ये वो स्थान है जिस पर पहुंचने पर प्राणी की सब चिन्तायें दूर हो जाती है। हृदय में प्रेम रूपी उल्लास समुद्र की लहरों की तरह लहराने लगता है।
इस स्थान की मिट्टी मस्तक पर धारण करने से बुद्धि का विकास होता है।

दोहा:-
खटवांग राजा की पुरी, खाटू नगरी नाम।
सतयुग काशी धाम थी, कलियुग खाटू धाम॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
श्याम कुण्ड की महिमा प्यारी।
प्रगट हुए यहाँ लख दातारी॥
निर्मल जल की उज्जवल धारा।
इक्कीस पैड़ी नीचे किनारा॥
जो कोई जल में नहावेगा।
श्याम की शरण चला आवेगा॥
पर्व में नहावे रोग कटेगा।
हृदय का भय दूर हटेगा॥
सोमावती मावस को नहाना।
चान्दनी बारस पर्व सुहाना॥
‘सालग राम’ के चन्दन लगाना।
पवन पुत्र की स्तुति गाना॥
दो पीपल ब्रह्म रूप यहाँ पर।
नारी चढ़ावें जल यहाँ नहाकर॥
मन वांछित फल निश्चय पावे।
अखण्ड ज्योति यह भेद बतावे॥

दोहा:-
ब्रह्म मुहूर्त में हर समय, नहावे नियम से कोय।
वचन सिद्ध उसके सही, मेट सके ना कोय॥
कुष्टी को काया मिले, दुर्बल को बल जोर।
निर्धन को माया मिले, मटकत को मिले ठोर॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
इस जल से मत घृणा करना।
वरना पड़ेगा दुःख भी सहना॥
कूड़ा करकट मत ना फेंको।
नहीं मानो तो करके देखो॥
अज्ञानी जो समझ न पावे।
श्याम कुण्ड में किस लिए नहावे॥
पहले माथे जल को लगाओ।
फिर तुम मल मल करके नहाओ॥
जी चाहे जल घर भी ले जाओ।
वक्त पड़े पर ही अजमाओ॥

दोहा :-
श्याम कुण्ड से सौ कदम, दानी को दरबार।
उत्तर पश्चिम कूंट में, बीचों बीच बजार॥
पोली पर हनुमान जी, बैठे रहते रोज।
इस दरबार में हर पल होती, पाप पुण्य की खोज॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
मन्दिर की शोभा क्या वरणी।
चलती रहती है यहाँ करणी॥
संगमरमर पत्थर चमकीला।
धोला काला रंग रंगीला॥
कलाकार की है चतुराई।
सन्मुख काला बैठे है यदुराई॥
अगवा बैठे श्री गणेशा।
सेवक मनावें प्रथम हमेशा॥
शिव और पार्वती हैं संग में।
भांग बूटी के बैठे रंग में॥
इन्द्र विश्वकर्मा जी आते।
सुन जाते जो हुक्म सुनाते॥
देव दरबार है सच्चा सौदा।
शक्ति धारी बैठा जोधा॥
संगमरमर का ऊँचा मन्दर।
श्याम देव जी बैठे अन्दर॥
सेवक भेंट में ध्वजा चढ़ावें।
खीर चूरमो भोग लगावें॥

दोहा:-
लाखों सेवक आ रहे, पैदल मगन में चूर।
श्याम देव के प्रेम रंग में रंगे हुए भरपूर॥
मोटर कार में आ रहे दर्शन के अभिलाषी।
सच्चे मन से जो आवे वो, निश्चय ही फल पासी॥
ऊंट घोड़ों पर चढ़ रहे, सेवक चारों ओर।
चरणामृत पाने की इच्छा, कहते हाथ को जोर॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बैल गाड़ी और ईजन गाड़ी।
आती हैं भर भर कर ठाड़ी ॥
चारों ओर जयकार हो रही।
कीर्तन की झनकार मोह रही ॥
दो दरवाजे हैं अति प्यारे ।
आओ जाओ बांध कतारें॥
परिक्रमा प्रणाम करो जी।
जो चाहते हो अर्जी धरो जी॥
जिसने झोली माँडी आकर।
वो जावे कछु निश्चय पाकर ॥
निचली पैड़ी दण्डवत करना।
मांग ले मन की तूं मत डरना ॥
छवि मन्दिर की उज्वली दमके ।
अखण्ड ज्योत भी चम चम चमके॥
कार्तिक फाल्गुन आते प्रेमी।
श्याम देव संग रहते नेमी ॥
स्वामी से मिलने की आशा ।
सेवक आते ले अभिलाषा ॥
भवन छबीला है अति प्यारा ।
दर्शन से होता निस्तारा ॥

दोहा:-
अत्तर सुगन्धी महक रही, फूल सुगन्ध अति शील ।
चन्दन की खुश्बू में लहरें, मोर पांख रंग नील ॥
बड़े नगारे बगल में, डंका लागे जोर।
गूंज उठी डम-डम-डम करके, चारों दिशायें ओर ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बड़े नगारे कहाँ से आए।
सुनने को जो जी ललचाए ॥
इस कथा को आगे पढ़ना ।
दर्शन करने पैड़ी चढ़ना ॥
अत्तर की खुश्बू में रम कर।
दर्शन करना जी भर भर कर ॥
फूल के हार की भेंट चढ़ाना ।
चन्दन का तुम तिलक लगाना ॥
बड़े मत दयालु हैं दातारी ।
दयावान ही अवतारी ॥
मत डरना ये अन्तर्यामी ।
जिनको समझता है तूं स्वामी ॥
मतना छुपाना मन की बतियाँ ।
तुमको लगा लेंगे ये छतियाँ ॥
कठिन परीक्षा ले लेते हैं ।
फिर तो दर्शन दे देते है।
सब के कारज पल में सारें ।
जब सेवक धर ध्यान पुकारें ॥
भक्त के मुख की सच्ची वाणी ।
श्याम देव की यही निशानी ॥

दोहा –
पूजा विधि मन से करो, चढ़ावो प्रेम के फूल ।
प्रेम के झोले में खो करके, मगन होय कर झूल ॥
कपूर अगरबाती सहित, गऊ के घी की ज्योत ।
खीर चूरमो ध्वजा नारियल, भेंट चढ़ाओ बहोत ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
जात जडूला देते रहना ।
स्वामी जी के दर्शन करना ॥
मन्दिर आगे बड़ एक जूना ।
नीचे है भक्तों का धूना ॥
निर्धन हो चाहे धनवानी ।
सबको देते हैं ये दानी ॥
शुद्ध सफाई सेवक रखते।
क्योंकि इन्हें बह्मचारी कहते ॥
चाँदनी ग्यारस बारस आवे ।
श्याम देव का ध्यान लगावे ॥
दिनचर्या में काम करो जी ।
सारी रात जागरण करो जी ॥
श्याम नाम इक सार अधारा ।
कलियुग में बस यही सहारा ॥
पक्का फर्श दरबार के आगे ।
भक्त आये चर्णाविन्द लागे ॥
जय श्री श्याम आसरा धणी का ।
प्रकाश देते हैं कला मणिका ॥

दोहा –
मन्दिर आगे चरण धूल, माथे लेवो लगाय ।
चरण टिके हैं श्याम देव के, जन्म सफल होजाय ॥
क्षत्री वंश सेवा करे, हुक्म के ताबेदार ।
उज्जवल जल से मन्दिर धोवें, करें नित्य श्रृंगार ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
ढाई सौ साल पुरानी कहानी।
सेवा करती थी क्षत्राणी ॥
कुण्ड का जल माथे पर धरती ।
तन मन धन से सेवा करती ॥
श्याम देव के दर्शन करके।
भोजन करती थी जल भरके ॥
श्याम कुण्ड के निर्मल जल को
धारण करती थी हर पल को ॥
जय श्री श्याम कुण्ड की धारा ।
पापी का करती निस्तारा ॥
निर्मल जल तेरा बड़ा सुहाना ।
अभिलाषी का प्रण है पुगाना ॥
लहरों के स्वर में है गीता ।
मुर्दा भी होता है जीता ॥
हर पैड़ी पर श्याम चरण की ।
अटल निशानी पाँव धरन की ॥
इसी तरह नित स्तुति गाती ।
ब्रह्म मुहूर्त में नित ही नहाती ॥

दोहा:-
फाल्गुन मास की द्वादशी, छाई वसंत बहार ।
श्याम देव जी प्रगट हुए, श्याम रूप छवि धार ॥
बोले देवी नर्वदा, क्षत्री वंश कुमारी ।
मैं प्रसन्न तुमरी सेवा से, मांगो जो मर्जी थारी ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ॥
सन्मुख देखा श्याम रूप को ।
लीले के असवारी स्वरूप को ॥
गद् गद् मगन हुई अति भारी ।
चरण लिपट गई क्षत्री कुमारी ॥
बार बार लीनी बलिहारी ।
माँगूं क्या कहो तुम ही मुरारी ॥
मैं चरणों की चाकर थारी।
सेवा की है लालसा हमारी ॥
वचन कहो तो कह देऊं बतियाँ ।
क्षमा करो मेरी सारी गलतियाँ |

दोहा:-
हो प्रसन्न श्री श्याम जी, किन्हीं कोल करार।
तुमरा ही वंश करेगा सेवा, जब तक रक्खे प्यार ।।
और कछु भी मांग लो, वचन तुम्हारे पास ।
मनोकामना पूर्ण होवे, खाटू हमारो वास।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बोली नर्बदा विनती करके ।
श्याम चरण पर उँगली धरके ॥
तुमरी सेवा जब ही मानूँ ।
याद करत ही आओ जानूँ |
भक्त आय अरदास करेंगे ।
शीश तुम्हारे चरण धरेंगे ॥

जब भी पुकारें आना पड़ेगा ।
हुक्म सुना कर जाना पड़ेगा ॥
भक्त हृदय से निकले वाणी।
वो ही होगी तुम्हारी निशानी ॥
झूठ कभी होने पावे ।
धरती उथल पुथल हो जावे ॥
चाहे गगन से सूरज टूटे ।
भक्त के वचन न होवें झूठे ॥

दोहा :-
हरि कह कर तथास्तु, अटल रहे यही बात ।
इतना कहकर अदृश्य हो गये, उदय हुई प्रभात ॥
जय श्री श्याम दयानिधे, भक्तों के प्रतिपाल ।
भक्त के वचन तुम्हारी वाणी, कभी न होवे टाल ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ॥
क्षत्री वंश सेवक है चाकर।
करते पूजा ब्राह्मण आकर ॥
ब्राह्मण गौड़ ही होगा पुजारी ।
सेवक लाखों आज्ञाकारी ॥
हार पुष्प श्रृंगार सजाओ।
मन्दिर से पश्चिम को जाओ ॥
श्याम बाग हरियाला प्यारा ।
खुश्बू की लहरों का उछारा ॥
महक महक के सुगन्ध महके ।
मीठी मीठी कोयल चहके ॥
हार पुष्प का यहाँ पे बनाओ ।
भांति भांति के फूल सजाओ ॥
भंवरों की गुन्जन अति प्यारी ।
मोहे स्वर झनकार है प्यारी ॥
तितली उड़ती मौज उड़ावे ।
पर भँवरों से नैण चुरावे ॥
नित गन्धर्व हैं गान सुनाते।
बाजे सभी सजाकर लाते ॥
देव देह धारी ब्रह्म ज्ञानी ।
श्याम देव आते हैं दानी ॥
रोज घूमने कोई बहाने ।
प्रकृति की शोभा को बढ़ाने ॥
आते हैं बंशी को सुनाने।
लहर में मग्न होय स्वर गाने ॥
बाग के बीच फुव्वारा प्यारा ।
जल बूँदो का करे उछारा ॥
इसके नीचे बंशी की वाणी ।
गाते श्याम जी नित नई वाणी ॥
चाँदनी रात की मोहनी घटायें।
उठती हैं खुश्बू की छटायें ॥
पथ सफेद रंगों का दमके ।
चाँद के जैसा चम चम चमके ॥
चाँदनी खिलती है जब छाकर।
खुश होती हरियाली पाकर ॥
दूनी चमकती सड़क रंगीली ।
महक गोद में मोहनी रसीली ॥

दोहा :-
हार श्रृंगार श्री श्याम का, बनता यहां पर रोज ।
श्याम प्रेम के भक्त दुलारे, करते नाथ की खोज ।।
हार पहनाओ मगन होयकर, श्री श्याम के शीश ।
देव रूप अवतार देव ये, देहधारी जगदीश ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥

पाण्डव वंश की वंशावली

दोहा :-
पाण्डव वंशी लाडला, धर्म युद्धिष्ठिर नाम ।
सत्य वचन मुख से निकले, उनको करूं प्रणाम ॥
भीम बली और हंसमुखी माता कुन्ती निछार ।
बड़े भाई की आज्ञा मानो, इनसे मिलता सार ॥
अर्जुन तीरन्दाज थे, बुद्धि के चतुर सुजान ।
जिनके संग हर पल रहते, श्री कृष्ण भगवान ॥
नकुल और सहदेव लाडले, कहें भविष्य की बात ।
दोनों हर घड़ी संग रहें, बिछुड़े नहीं इक रयात ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
भीम के दो पुत्र अति प्यारे ।
ममता के थे लाड दुलारे ||
अहिलवती थी पहली रानी।
दूजी हिडम्बा सुन्दर दानी ||
अहिलवती के बर्बरीक जाये ।
सुन्दर बदन सुशोभित पाये ||
जिसने शीश का दान दिया था।
कृष्ण से वरदान लिया था ||
हिडम्बा का इक लाड दुलारा ।
घटोत्कच नैणों का तारा ॥
महाभारत युद्ध में जब आया ।
पाण्डव पक्ष में युद्ध रचाया ॥
रण में काम आया बलवानी।
वीर धीर गम्भीर सुजानी ॥
घटोत्कच के था एक बालक ।
देवी शक्ति धारी चालक ॥
सुहृदय था नाम अति प्यारा ।
देवी भभूति का लिया सहारा ॥
घुँघराले बाल सुहावने लगते ।
बर्बरीक उसको भी कहते ॥
रण भूमि में जब वो आया।
कृष्ण को गर्व के वचन सुनाया ||
श्री कृष्ण ने चक्र चलाया ।
धड़ से सर को काट गिराया ||

दोहा :-
अर्जुन के दो लाडले, धीर वीर बलवान ।
अभिमन्यु बड़ा लाडला, छोटा बभ्रुमान।।
चक्रव्यूह कौरव रच्यो, छल गारी तलवार ।
अभिमन्यु यहां काम आ गये, पर मानी नहीं हार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बभ्रुभान था शक्तिशाली ।
मरा नहीं रण में बल शाली ॥
मणिपुर का ये हो गया राजा ।
चाचा ताऊ के संग में साजा ॥
पांच भाई और चार सुत हैं प्यारे ।
नौ नर प्राणी चमकते सितारे ||
एक पोता देवी का पायक ।
हुआ वीर यक्षों का नायक ॥
दूजा पोता हुआ परीक्षित ।
धर्म नीति में गहरा शिक्षित ॥
जय श्री श्याम जय श्री श्याम ।
खाटू वाले बाबा जय घनश्याम ॥
हरिॐ भगवते श्याम देवाय नमः ।
श्याम देवाय नमः खाटू देवाय नमः ॥
देव शक्ति धारी बलवानी।
महाभारत की कही कहानी ॥
अखण्ड ज्योत है इनकी निशानी।
अमर रहेगी कथा सुहानी ॥


।। कथा प्रारम्भ ।।

दोहा:-
बाशक नाग की लाडली, अहिलवती था नाम ।
शिव की प्रेमी भयी पुजारन, नागलोक है मुकाम ||
गौरवर्ण सुन्दर बदन, नेत्र लाल अंगार ।
बल में सबल फुर्ती चतुरानी, शिव के करे श्रृंगार ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
एक बाग था अति सुहाना ।
मोहने वाला मन को लुभाना ||
भांति भांति के फूल महकते ।
नई नई वाणी के पक्षी चहकते ॥
कलरव पक्षियों की मोहणी ।
गूंज रही झंकार सोहणी ॥
हरियाली रहे बारह मासा |
नाग कन्याएँ करती तमासा ॥
टोली बना सब घूमने आवें ।
अहिलवती का मन बहलावें ॥
सब श्रृंगार सजा कर आती ।
कोयल भांति रागनी गाती ॥
ताली पटका आँख मिचौली ।
भरती आपस में मिल कोली ॥
उछलें नाचें छुप छुप गावें ।
अहिलवती को ढूँढ के लावें ॥
सारी सखियां खेल रचावें ।
अहिलवती को नाच नचावें ॥

आप भी नाचें दे दे घूमर ।
छम छम बाजे छन छन झूमर ||
शिव के शिवालय बाग बीच में ।
अहिलवती जल रहती सींचनें ॥
सुबह शाम नित यही काम था।
शिव की स्तुति, शिव को प्रणाम था ॥
सखी सहेली घर चली जाती।
तब शिव जी को गीत सुनाती ॥

दोहा:-
एक सखी करने लगी, अहिलवती से सवाल।
बाशक ताऊ कहां गये हैं हमको कहो खुशहाल ।।
आज देर तक खेलकर, मन को लेवो निकाल ।
उमर हमारी खेलन की है, हो गई सोलह साल ।।

भजन

(तर्ज- सपने सुहाने लड़कपन के)

शिव पूजा का मन में विचार लाई,
आई अहिलावती तेरे द्वार आई ।। टेक ॥।
जल गागर में भर लाई,
शिवं मूरत को नहलाई,
घिस चंदन तिलक लगाई,
तेरी पूजा में सुख पाई,
तेरे दर्शन की लेके गुहार आई, आई अहिलावती…..

नित ताजे फूल वो चुनती,
फिर उनसे हार वो बुनती,
शिव महिमा प्रेम से गाती,
जिसे सारी सृष्टि सुनती,
तेरा, फूलों से करने श्रृंगार आई, आई अहिलावती….. ।।

तेरे चरणों का ध्यान लगाये,
तेरे चरणों में पुष्प चढ़ाये,
तेरे चरणों में चित लाये,
तेरे चरणों में शीश नवाये,
तेरे चरणों में सेवा हजार लाई, आई अहिलावती….//


अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ||
अहि. – शिवजी के पास पिताजी गये हैं।
क्योंकि उनके गले पर रहे हैं ॥
शिव की याद हृदय में आती ।
उठ चल देते हैं प्रभाती ॥
शिव को पिताजी नित हैं भजते ।
गल में हार की शोभा सजते ॥
शिव की आज्ञा लेकर आते ।
मीठी बतियां मुझको सुनाते ॥
सखी, पिता तुम्हारे अकेले जाते ।
संग तुम्हें क्यों नहीं ले जाते ॥
शिव दरबार है स्वर्ग का झोला ।
तुमरा क्यों नहीं झूला चोला ॥
पवन सुगन्धी मीठी आती ।
मंद मंद स्वर में गीत सुनाती ॥
डम डम मीठा डमरु बाजे ।
गरज ध्वनि से नाहर गाजे ||
पंख पखेरु मौज उड़ाते ।
चोंच में भर कर फूल चढ़ाते ॥

ऐसी मौज नहीं लूटी बहना।
इसलिए पड़ता है तुम्हें कहना ||

दोहा :-
अहिलवती ने चौंक कर गरज के करी पुकार ।
बाग में गूंज उठी किलकारी, पहुंची शिव दरबार ।।
बाशक नाग को सुन गई, प्रभु से करी अरदास ।
अहिलवती मेरी लाडली, बुला रही मुझे पास ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
शिवजी ने इक वचन सुनाया।
भेद तिहारा समझ न पाया ॥
कितनी उमर की लड़की तुम्हारी ।
अटल सुहागन है या कुँवारी ॥
बाशक नाग मुस्कान उड़ाई।
पार्वती के समझ में में आई ॥
बोली भवानी विनती कर कर।
जय महादेव शंभु शिव हर हर ॥
एक रोज की कहूँ कहानी।
आप तपस्या में धर ध्यानी ॥
बाशक आपके गल सोहे था।
मैं बैठी मेरा मन मोहे था ॥
मैं प्रसन्न बाशक पर हो गई।
पति के हार की मोह में खो गई ॥
मैंने कहा तुझे जो कुछ चाहि।
मन वांछित फल हम से पाइये ॥
बाशक ने कही मीठी वानी।
गोद भरो हे मेरी भवानी ॥
कन्या का मैंने वचन दिया था।
आप से छुपवां कसूर किया था ॥

दोहा :-
उमापति कहने लगे, हंस हंस मीठी बात।
मुझको भेद तिहारा सारा, दिया जो वचन प्रभात ।।
आशिष हम भी दे रहे, सुनो नाग धर ध्यान ।
देव की माता तुमरी पुत्री, होगी सुचरित्र सुजान ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बाशक जय जय कह कर बोले।
महादेव जय शंकर भोले ॥
तुमरे चरण का चाकर रहा हूँ।
धन्य भाग्य में तब से हुआ हूँ ॥
आज खुशी दीनी धन माया ।
मगन से शीतल हो गई काया ॥
बाशक लुल लुल प्रणाम कीनी।
अहिलवती की फिर सुध लीनी ॥ ।

बाशक जब अपने बाग में पहुंचा तो वह अहिलवती को ढूंढने लगा। प्रायः सभी पेड़ों के नीचे

आया, लेकिन अहिलवती कहीं नहीं मिली तब वह शिवालय की ओर चला :-

दोहा:-
शिव पूजा में मगन थी, ध्यान लगन घर लीन ।
बम बम भोले मुख से निकले, बुद्धि में चतुर प्रवीन ।।
बाशक बैठा पास में, शिव से लगाई ध्यान ।
पिता पुत्री दोनों तप करते, जय जय दया निधान ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ॥
अहिलवती ने पलक उधारी ।
पिता पास बैठा तप धारी ॥
रूठ के बोली भोली वाणी ।
पिता से कह दई बात सुहानी ॥
कहाँ जाते हो पिता हमारे।
मैं भी चलूंगी संग तुम्हारे ||
शंकर का स्थान रंगीला |
देखना चाहूँ कैसा सजीला ॥
होंगी वहाँ पर पार्वती माता।
जिनका अमर सुहाग सुहाता ॥
उनके चरण में बैठ कहूँगी।
मैं तो हरदम यहीं रहूँगी ॥
बाशक- धन्य हों पुत्री विचार तुम्हारे ।
शंकर रहते पास हमारे ॥
जब भी बुलावो भागे आवें।
पार्वती को संग में लायें ॥
मेरी पुत्री उन्हीं की माया ।
रमी हुई ममता की छाया ॥
मेरी ममता की हो दुलारी ।
नित तुम्हें देखूं उठ संवारी ॥
तुमरी है ये दौलत सारी।
नाग लोक की राजकुमारी ॥
अमृत कुण्ड से अमृत पीवो।
युग युग तक मेरी बेटी जीवो ॥

दोहा :-
अहिलवती दोऊ नैन से, टप टप बहायो नीर ।
ममता भरे थे प्रेम के आँसू, संस्कार तस्वीर ।।
बाशक गद् गद् होय कर, गोदी लेई उठाय ।
सिर पुचकारे आंसू पूंछे, भोली बात बनाय ||

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया बाशक- आज उदासी कैसी छाई ।
बेटी कहो तुम क्यों मुरझाई ॥
तेरे आँसू मेरे मन को।
कर देते हैं बेहोश तन को ॥
क्या सखियों ने बात सुनाई।
फिर मेरी बेटी क्यों दुःख पाई ॥
अहि. – अहिलवती मुस्कान भरी जब ।
गद् गद् होकर हरी भरी तब ॥
पिता के गल में कोली भरली ।
आज पिता थारी जाँच में करली |
मैं रोती जब तुम क्यों रोते।
मैं सोती तब तुम क्यों सोते ||
बिना खिलाये तुम नहीं खाते।
रूठ जाऊं तो मुझे मनाते ||
मैं तो झूठ मूठ में रोती ।
आपके मन की बात खोजती ॥

दोहा:-
हंस हंस महल में पहुँचकर, कीन्हीं अनेकों बात ।
रल मिल कर भोजन करें, संध्या और प्रभात ।।
अमृत कुण्ड का देवता, बाशक नाग महाराज ।
नागदेव के नाग ही चाकर, हुक्म संवारे काज ॥

॥ द्वितीय पाठ ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ||
दूजे दिन जब सखियाँ आई ।
अहिलवती के अति खुशी छाई ॥
खेलन की है मन में भारी ।
आई हैं हिल मिल कर सारी ॥
मीठी मीठी बात बनावें ।
रस की सुरीली कथा सुनावें ॥
प्रेम विवश हो झूला झूलें।
हर झूले में मगन हो फूलें ॥
काले केश उड़े लहरावें ।
रंग बिरंगी चुनड़ी फहरावें ॥
अहिलवती भी संग में झूले ।
पवन के झूले में सुध भूले ||
पवन का झोंका जोर से आया।
उड़ गई चुनड़ी तन मुस्काया ॥
सब सखियों ने हँसी उड़ाई ।
अहिलवती मन में शरमाई ॥

दोहा:-
एक सखी हंसकर कहे, शगुन लिया है विचार ।
जल्द सजेगा अहिलवती के, सब सोलह शृंगार ।।
दुल्हन बनकर जायेगी, त्याग हमारा प्यार ।
नहीं करेगी याद कभी भी, ये ऐसा संसार ।।


भजन
(तर्ज-खाटू को श्याम रंगीलो रे….)

सब सखियाँ मंगल गावै जी, सब सखियाँ ॥ टेक ॥
अहिलवती को छेड़ छेड़ कर, फिर बाँहों में घेर घेर कर।
मन ही मन मुस्कावै जी, सब सखियाँ ।।1।।

नाग लोक की राजकुमारी, अब न रहेगी और कुँवारी ।
अच्छे सगुन मनावै जी, सब सखियाँ ||२||

करलो शादी की तैयारी, जल्द बनोगी दुल्हन प्यारी ।
छेड-छेड इतराये जी, सब सखियाँ ||३||

प्रीतम के घर जब जायेगी, घूँघट में तू शरमायेगी ।
सुन्दर स्वप्न दिखावै जी, सब सखियाँ ।।४।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
चुन्दड़ी उड़ गई ये ही निशानी।
हुई पराई बहन सुर ज्ञानी ॥
हाथों में मेंहन्दी जल्द रचेगी।
नाग लोक में शहनाई बजेगी ॥
माथे बिन्दी माँस रंगीली।
बहन बनेगी छैल छबीली ॥
छम छम करती पिया घर जावे ।
पति चरणों में ध्यान लगाये ||
अहि- मत छेड़ो न बतियां बनाओ ।
मन में क्या है मुझ को सुनाओ ॥
मेरे बाबुल की हूँ दुलारी।
नहीं बिछडूंगी मर्जी हमारी ॥
मुझ बिन कैसे पिता रहेगा।
बेटी बेटी किसको कहेगा ॥
शिव की पूजा कौन करेगा।
कलश पानी का कौन भरेगा ||

दोहा :-
बाशक जी भी आ गये, सुन बेटी की बात।
सखियाँ चली अपने घर को, होय रही थी रात ।।
पिता पुत्री के प्रेम का, कर नहीं सकते मोल ।
ये हृदय की गहरी शाख को, कौन निकाले खोल ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बाशक पूछे कहो दुलारी ।
क्या कहती थीं सखियां तुम्हारी ॥
पिता पुत्री की चर्चा हो रही ।
सुध बुध तुम्हारी कैसे खो रही ॥
अहि. मन की मौजण सखियाँ मेरी ।
बतियाँ करती रही घनेरी ॥
कितना प्यारा पिता तुम्हारा ।
तुम इकलौती उनका सहारा ॥
हमरी बात ना ध्यान धरो जी
सन्मुख क्या है फिकर करो जी ॥
काली पीली रात अन्धेरी ।
आवे मचलती क्या ये घनेरी ॥

दोहा :-
पिता पुत्री बतियाँ करें, गजब तूफान।
आया पहाड़ उजाडूं पेड़ उखाडूं, ये कहता नादान ।।
काली पीली उमड़ कर, अन्धकार ले साथ।
सर सर मचल उछलती आवे, आँधी संग में रात ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
लुल्ल लुल्ल कर दरखत हिलते हैं।
झड़ झड़ कर पत्ते गिरते हैं ॥
हवा वेग का अन्त नहीं है।
पिता के संग में पुत्री वहीं है ॥
उड़ उड़ चुन्दड़ी सर से जावे।
पकड़े पल्ले रुक नहीं पावे ||

फूल टूट धरती पर गिरते ।
पेड़ों के मुख घूमते फिरते ॥
अहिलवती मन में घबराई ।
ऋतु देव से पुकार लगाई ॥
सुनलो हे प्रकृति के राजा ।
तेरी माया लुट रही आजा ||
तुमने जो ये शोभा बढ़ाई।
आँधी करती पल में सफाई ||
अन्धकार को रोको देवा ।
टूट कर गिरते कच्चे मेवा ||
आओ हमारी रक्षा करियो ।
प्रकृति में शोभा भरियो ॥
तुम बिन आज न कोई सहाई ।
हे ऋतु राज हो तेरी दुहाई ॥

दोहा :-
आंधी वापिस हट गई, बाग़ हुआ सुनसान |
गिर गये सारे फूल और पत्ते, युद्ध हुआ घमासान ।।
चिन्तित हो अहिलवती, देखे चारों ओर।
उजड़ गया है बाग हमारा, उड़ गये पक्षी मोर ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बाशक जी धीरज देते हैं ।
प्रभु की माया यही कहते हैं ॥
मत घबराओ बेटी हमारी ।
दीनानाथ करें रखवारी ॥
मर्जी बिना कोई पात न हिलता ।
उजड़ा बाग भी फिर से खिलता ॥
अहिलवती ने नजर घुमाई ।
फूल बिना कलियाँ मुरझाई ||
हाय पिताजी यह क्या हो गया।
बाग हमारा सारा खो गया ॥
फूल नहीं ना एक भी पत्ता ।
ये किस शक्ति की है सत्ता ॥
शिव की पूजा करूं सवेरे ।
कैसे चढ़ाऊँ फूल घनेरे ॥

दोहा :-
बाशक जी कहने लगे, करो अभी विश्राम ।
बिन पुष्पों के पूजा करना, कर दण्डवत प्रणाम ।।
दयावान शिवजी बड़े, अन्तर्यामी भगवान।
उनको सब मालूम है बेटी, वे हैं दया निधान ।।

पिता पुत्री दोनों महलों में विश्राम करने के लिए चले गये, अहिलवती तो महान चिन्तित थी कि सवेरा होते ही शिवजी की पूजा के लिए पुष्प कहां से लाऊंगी, इसी चिन्ता में रात बीत गई लेकिन नींद नहीं आई सूर्य देव प्रगट होने के लिए उद्यत हो रहे थे।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
लाल किरण सूरज की चमकी।
पीली बदली चम चम चमकी ||
पंख पखेरु जागे सारे ।
दाना चुगने भागे सारे ॥

छोड़ छोड़ कर अपना बसेरा ।
कहते जाते हुआ सवेरा ॥
त्याग पलंग अहिला उठ धाई।
स्नान करन की सुध को लाई ||
स्नान किया और वस्त्र पहने।
उचित सुहाये पहने गहने ॥
धूप दीप से थाल सजाकर ।
बाग में आई मन को लगाकर ||
फूल के ढेर धरणी पै पड़े थे।
पेड़ सभी उनमने खड़े थे |
अहिलवती का जी ललचाया।
फूल उठा कर थाल सजाया ॥
पहुँच शिवालय आवाज लगाई ।
टन टन घंटी जोर बजाई ॥
हर हर महादेव की जय हो ।
उमापति शिवजी की जय हो ॥
धूप दीप से आरती कीनी ।
लुल लुल कर बलिहारी लीनी ॥
शंका कर के पुष्प चढ़ाये।
अनहोनी को कौन मिटाये ॥

दोहा:-
प्रगट हो गई अम्बिका, खड्ग त्रिशूल को धार ।
सुन्दर वस्त्र हैं सज रहे, गले रंगीला हार ।।
चमक रही माथे मणि, किरणां वे-शुम्मार ।
जोगिनी मैरों संग खड़े करते जय जय कार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ||
बोली भवानी क्रोध में होकर।
अहिलवती की नींद को खोकर ॥
बासी पुष्प चढ़ाये भौरी ।
मैं हूँ शिवशंकर की गौरी ॥
मेरे पति का अपमान किया है।
तूने श्राप का भार लिया है ॥
उल्टे कदम हैं तूने बढ़ाये ।
बासी फूल को कैसे चढ़ाये ॥
तूने शिव मर्यादा त्यागी ।
इस कारण से श्राप की भागी ॥
मरा हुआ तुझे पति मिलेगा।
फूल कली का तब ही खिलेगा ||

दोहा :-
पांव पकड़े तब अहिलवती, दीन्यों शीश नवाय ।
भूल हुई है मुझसे भारी, क्या करूं इसके सिवाय ||
फूल बाग के झड़ गये, आई आँधी जोर ।
काली पीली रात अन्धेरी, उमड घुमड़ घटा घोर ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ॥
क्षमा करो हे मुझे भवानी ।
मैंने कीनी है नदानी ॥
मात कुमात न होती जग में।
छाई बात याही रग रग में ॥

भूल हुई है कसूर हमारा ।
माता आपका ही है सहारा ||
पूर्ण हो गई आज वो आशा |
आपके दर्शन की अभिलाषा ॥
वापस अपने वचन ले लो।
और चाहे कछु मुझको कह लो ||
मत तरसाओ ओ मेरी माता ।
तुम ही हो जीवन की दाता ॥
भूल की गलती क्षमा होत है।
जगत तिहारी बाट जोत है ॥
क्षमा करो हे कमला राणी ।
विद्या तू ही देवी हे ब्रह्माणी ॥
तू ही शारदा हे रुद्राणी ।
तू ही अम्बिका मात भवानी ॥

दोहा :-
माता राजी हो गई, छाई मुख मुस्कान ।
मन की इच्छा पूर्ण होवे, मिले पति बलवान ||
पर वचनों में बँध गई, कभी न होवे टाल ।
इतनी कह अदृश्य हो गई, पवन वेग की चाल ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिला ने मन क्रान्ति करली।
महादेव के बान्थी भरली ॥
जोर जोर से रोकर कहती।
आँसू धार उमड़ कर बहती ॥
तुमरे संग अपराध किया है।
मात ने आ दण्ड दिया है ॥
ऐसी भूल कभी नहीं कीन्हीं ।
शुद्ध बुद्धि तो तूने दीन्हीं ॥
बिन फूलों के पूजा करती ।
भय से जाती थी मैं डरती ||
भय को दूर किया नहीं क्यों ।
पुष्प हार नव दिया नहीं क्यों ॥
तुम करता हो करने वाले।
बल हिम्मत मन भरने वाले ॥
बोलो मुख से हमें सुनाओ ।
भय को मन से दूर हटाओ ||

दोहा :-
बाशक जी को सुन गई, शिव मन्दिर आवाज ।
वेग बली हो उड़ कर चते, आये दौड़ के भाज ||
लाड कुँवर को देख कर, शिव संग कर रही बात ।
पर रोवत है किस लिए उदय हुई प्रभात।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बाशक जी ने बाँह पकड़ ली।
ममता के बल जोर जकड़ ली ॥
कहो रोज ही क्यों रोती हो ।
चिन्ता से तन क्यों खोती हो ॥
साच आज बतलानी होगी।
देख तुझे, मेरी सुध बुध खोगी ||

जो इच्छा हो साच बताओ ।
पिता से बतियां नहीं छुपाओ ॥
मुख से कहोगी वो ही होगा।
कह के सुनाओ जो मुझ जोगा ||
अहिलवती ने धीरज धर कर।
बात बतादी सब रुक रुक कर ॥
आज मिला है श्राप अति भारी ।
कैसे निभाऊ हूँ दुखियारी ||
भूल से वासी पुष्प चढ़ाये ।
तुमरे कहे बिन कदम बढ़ाये ||
पिता की आज्ञा जो ठुकराता ।
वो मानव किस लिए कहाता ॥
आज ज्ञान हुआ दूर अन्धेरा ।
उदय हुआ ये सोहरण सवेरा ॥
मरा हुआ पति मुझे मिलेगा ।
तब ही मन का फूल खिलेगा ||
ये ही भवानी ने फरमाया ।
मेरा तो मन है घबराया ||

दोहा :-
बाशक ने कुछ सोच कर दे धीरज समझाय ।
मरा हुआ जब पति मिलेगा, पति जीवित हो जाय ।।
पति जीवित का नाम है, देही है नाशवान ।
पति मिलेगा तुझे ऐसा, बल में चतुर सुजान ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ||
मत घबराओ हे मेरी बेटी।
तूं तो समझ की निकली हेटी ॥
यह अन्तर्यामी की माया।
फिकर करे क्यों उनकी माया ॥
जग के रचैया हैं त्रिपुरारी।
है सब उनकी लीला प्यारी ||
जो करते हैं अच्छा करते।
हम तो भरम में यों ही डरते ॥
अहिलवती कछु समझ ना पाई
पिता कहे से धरली समाई ॥
बोली मन्द मन्द मुस्का कर।
मैं अज्ञान हूँ तुमरी चाकर ||
तुम जानो, तुमरे प्रभू जानें।
मात तो हमरी आई जगाने ||
कह गई जो कुछ भी कहना था।
कदम भूल से नहीं धरना था |
बिन फूलों के पूजा करना।
ये ही कहा है तुम मत डरना ||
मैंने आप की कही न मानी।
भूल में कर बैठी नादानी ॥
सखियां बाग में छुपी हुई थी।
सुन वो रही थीं जो भी हुई थी |
ऊब ऊब कर सब नजर पसारें।
पिता पुत्री के मुख को निहारें ॥
आई थी माँ अम्बा भवानी।
कमला रानी और ब्रह्माणी ॥
हम नहीं दर्शन करने पाईं।
भूल हुई कछु देर से आई ॥

दोहा :-
बाशक धीरज दे रहा, मत घबराओ लाल।
अमृत पीवो चलो अभी, रहो मगन खुशहाल ।।
अमृत कुण्ड पर आ गये, पिता-पुत्री दोऊ संग ।
नौकर चाकर करें रखवाली, शस्त्र के संग भुजंग ||

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ||
अहिलवती ने अमृत पायो ।
पीवत ही हृदय को भायो ||
मन इच्छा भर अमृत पीन्यो ।
हृदय शान्त व शीतल कीन्यो ॥
अमृत कुण्ड के पहरेदारी ।
आव-भगत करते मन भारी ॥
दौड़ दौड़ प्याला भर लावें।
बाशक जी जो हुक्म सुनावें ||
धन्य धन्य हो राजकुमारी।
स्वीकार करो मनवार हमारी ॥
एक प्याला और पीना पड़ेगा ।
हमारा कहना करना पड़ेगा ||
अहिला ने हाथ में प्यालो लीन्यो ।
अधर पे धर जलपान ही कीन्यो |
पिता पुत्री जो बात बताते ।
नाग देव सुन खुशी मनाते ॥
अमृत कुण्ड के राजधिराजा ।
बाशक देव नाग महाराजा ॥

अमृत जल पान करने के बाद अहिलवती अपने पिता के संग महलों में आ गई और अपनी माता से सब हाल कहने लगी।


दोहा :-
अहिलवती की वाणी सुन, मात बंधावे धीर ।
वही होत है जो लिख दीनी, विधना ने तकदीर ।।
मत घबरावै लाडली, होगा वहो जो होय ।
होनहार बलवान जगत में, मेट सके न कोय ||

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ||
वह दिन उजला कब आवेगा ।
सुहाग तुम्हारा कब पावगा ॥
अर्ज हमारी यही त्रिभुवन से।
दयावान जग के भगवन से ॥
जल्द दिखाओ वो दिन सोहणां ।
श्राप नहीं आशीष मोहणां ॥
बेटी की मैं माँग भरूंगी।
दुल्हन का श्रृंगार करूंगी ॥
आलिंगन कर हृदय लगाऊँ ।
चम चमकीलो महल सजाऊँ ॥
ढोल पे डंको जो बजवाऊँ ।
तीनों भवन में गूंज उठाऊँ ॥
अहिलवती जब ब्याही जावे ।
देव देवता सब कोई आये ॥

दोहा :-
एकत्रित हो सखी सभी, आई महलां माँय ।
छाई उदासी अति घनेरी, धीरे रखती पाँव ।।
नेत्र नीर से सजल हैं, पलकों से बहती धार ।
उनमनी सी बेचैन सभी, पहन्यो नहीं श्रृंगार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ॥
अहिलवती को सब ही निहारें।
पास में बैठ के बात विचारें ॥
मत उदास हो बहन हमारी ।
हम सब ने भी धीरज धारी ॥
सुन लई सारी बात तुम्हारी ।
छुपी हुई थीं बाग में सारी ॥
कलम चली है विधाता की कैसी ।
इस काबिल तो नहीं थी ऐसी ॥
अहिलवती की माता बोली ।
तुम तो बेटी सचमुच भोली ॥
मात भवानी दयावान है ।
नारी धर्म का अति ज्ञान है |
लजवंती जिसको कहते हैं।
महादेव संग में रहते है।
जो कुछ सोची गहरी बतियाँ ।
हम पछताते अपनी गलतियाँ ॥
गलत कभी नहीं होने पावे ।
क्या लज्जा उसको नहीं आवे ||

दोहा:-
नाग लोक में सब जगह, छाई ये ही बात।
अहिला को है श्राप दे दिया, अम्बे भवानी मात ।।
सब के उदासी छा रही, करते बात विचार ।
राजकुमारी हमारी प्यारी, नहीं मानेंगे हार।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ||
नाग सभी एकत्रित हो गये ।
सुन श्राप चेतनता खो गये II
सब ने मिल कर बात विचारी ।
शिव के पास चले फणधारी ॥
बात सभी उनको कह देवो ।
वचन मात के वापिस लेवो ॥
राजकुमारी प्राण पियारी ।
कैसे देख सकें दुःखियारी ॥
नाग फौज चली बाँध कतारें ।
हर हर श्री महादेव पुकारें ॥
गूंज उठी खूँखार घनेरी ।
मणिधारी आवाज सुनहरी ॥

दोहा :-
खबर हुई वाशक चले आये दौड़ के पास।
सन्मुख सबके खड़े हो गये, धीर बंधाये आस ।।
तुमरी राजकुमारी का, उजला रहेगा भाग।
वापिस जाओ तुम पहरे पर, सुनो देव सब नाग ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बात समझ में सबके आई ।
धर ली सबने धीर समाई ॥
सबने मिल आवाज लगाई।
अनहोनी नहीं धरे समाई ॥
शंकर पास सभी जायेंगे ।
पर आज्ञा नहीं ठुकरायेंगे ||
जो सुन रखी होने न पावे ।
वरना हम सब प्राण गंवावें ॥

नाग देव सभी अपने-अपने पहरे पर चले गये, अपनी राजकुमारी उनको अत्यन्त प्यारी थी। वे उसको दुःखी नहीं देख सकते थे । लेकिन अहिलवती को मरा हुआ पति कौन मिलेगा, ऐसा किसी को कोई ज्ञान नहीं था, ये तो अब उस दिन की इन्तजारी करने लगे ।

दोहा :-
नई उमर के लाडले, पाण्डव कुन्ती लाल ।
बुद्धिमान बलवान सभी, धर्म नीति की चाल ।।
सुन्दर देही, शान्ति धारी, सत्य बोलना काम ।
भरी उमर है इसलिए, कर बैठे संग्राम ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
पाँचों भाई प्रेम से रहते।
बड़े भाई का कहना करते ||
खेल खेलना है हुशियारी ।
चाव से खेलें मर्जी प्यारी ॥
अपनी उमर के लड़कों के संग।
खेल खलने का सुन्दर ढंग ||
कौरव लाल भी खेला करते ।
भीमसेन से सारे डरते।
और किसी की परवाह न करते ।
चाहे जिसके बान्थी भरते ॥
एक समय तकरार हो गया।
कौरव पाण्डव बीच हो गया ॥
दुर्योधन कही मूर्ख वानी ।
भीमसेन था वहीं बलवानी ॥
पकड़े हाथ पटक्यो धरती पर ।
नाक से लहू निकले धरती पर ॥
रोतो कूकतो महलां आयो ।
शकुनी ने एक भेद बतायो ||
अन्न का लोभी भीम बलवानी।
कल ही बनाओ सत पकवानी ॥
दुर्योधन का काँटा काढूँ |
बैरी को जड़ से ही उखाडूं ॥
देके निमन्त्रण उनको बुलाओ ।
लाड़ प्यार से खूब जिमाओ ||

दोहा :-
आज्ञा हलकारे लई, गयो युद्धिष्ठिर पास।
भोज निमन्त्रण का है भेजा, करते तुमरी आस ।।
भोर होत ही पधारियो, पाँचों भाई साथ।
कौरव पाण्डव विचारियो, प्रेम भरी कोई बात ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ||
शकुनी ने पकवान बनाये ।
पाँचों भाईयों को बुलवाये ॥
युद्धिष्ठिर ने है बात विचारी ।
क्या आज्ञा है मात तुम्हारी ॥
दुर्योधन का सेवक आया ।
भोजन निमन्त्रण साथ में लाया ॥
आज्ञा पाकर ही जायेंगे ।
वरना घर भोजन पायेंगे |
पापी का मन पाप कहवै है ।
पाण्डू का मन साफ रहते है ॥
माता ने आज्ञा फरमाई ।
भीमसेन को बात बताई।।
तुम थोड़ा वहां भोजन करना ।
बाकी आकर घर पर करना ॥
ले आज्ञा चले पाँचों भाई ।
पहुँचे महल में बनी मिठाई।।
भीमसेन का जी ललचाया।
थोड़ी मिठाई मन समझाया ॥
पाँचों बैठे भोजन करने ।
शकुनी अगवा था पुरुषन में ||
सब को मिठाई थोड़ी डाले ।
भीमसेन को ज्यादा घाले ॥
सबने भोजन तृप्ति कीनी ।
भीम के थोड़ी कसर रह लीनी ॥
शकुनी ने कही मीठी वानी ।
भीम बली तो है बलवानी ॥
आप पधारो भीम भी आवे ।
भोजन तृप्त हो करके जावे ॥
चारों भाई घर को आये ।
माता को सब हाल सुनाये ॥
अच्छी मिठाई खूब बनाई ।
भीम के तो नहीं हुई समाई ॥
भोजन करके फिर आवेगा ।
खेल खेलने को जावेगा ||

दोहा :-
शकुनी निहारे दूर से, भीम की काया देख ।
क्या ताकत और बदन दिया है, हे विधना तेरा लेख ।।
भीम को मूर्छा आ गई, जहर मिलाओ नीच ।
भोजन बहाने धारकर, लियो लालच ने खींच ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
भीम के भोजन जहर मिलायो ।
शकुनी ने ये कपट रचायो ||
मूर्छा में बेहोश हो गया ।
भीम तो गहरी नींद सो गया ||
कौरव सारे जल्दी आये ।
भीम के तन को हाथ उठाये ॥
चले दूर दरिया के किनारे ।
भीम को फँका बिना सहारे ॥
बदन भीम का जल में डूबा ।
कौन धरे कौरव पर शूबा ॥

भीम बदन लहरें जल मांही ।
आ रहा नाग लोक के तांही ॥
जहाँ शिवालय अति सुहाना ।
पहुँचा भीम वहीं बलवाना ॥
होश बिना का बदन ये आया।
नाग लोक में हल्ला छाया ॥
अहिलवती भी दौड़ के आई।
देख बदन को मूर्छा खाई ॥
पड़ी धरणी पर खाय तिवाला ।
मेरा पति है यही रखवाला ||
बाशक जी भी दौड़ के आये ।
लाड लाडली को होश कराये ||
मुँह पर छिड़की बूँद जल धारा ।
उठ बेटी अब होश संवारा ||

दोहा :-
चौंक उठी अहिलवती, कीनो जोर आवाज ।
मेरा सुहाग ये आ गया है, अब तो बजाओ साज ।।
माँग भरो मेरे माथे में, मेहन्दी देवो रचाय ।
कर सोलह श्रृंगार मुझे, दुल्हन देवो सजाय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ॥
अब ये कैसे जीवित होंगे।
सत्य बात तुम मुझको कहोगे ||
नहीं तो मैं अब दुल्हन बनकर
साथ मरूंगी चिता में जलकर ||
ये सुहाग है उजला मेरा ।
इन बिन अब मेरा कहाँ बसेरा ॥
खूब बजाओ ढोल नगारे ।
खुल गये होंगे भाग हमारे ॥
नाग देव सब भाग के आये ।
काली घटा ज्यूं बाग में छाये ॥
बाशक जी ने मता उपाया ।
अमृत जल प्याला मंगवाया ॥
सेवक दौड़े प्याला भरने ।
सब तैयार हैं सब कुछ करने ॥
बाशक जी ले करके प्याला ।
भीम के मुख में अमृत डाला ||
भीम को चेतनताई आई |
नाग लोक में खुशियां छाई ॥
मन्द मन्द अहिला मुस्काई ।
नैन नजर खुशियों में छाई ॥
बज गया डंका नाग लोक में ।
गूंज उठा वो तीनों लोक में ||

दोहा:-
भीम होश में आय कर, देखे नजर पसार ।
कौन जगह पर आया हूं, मन में करे विचार ||
चारों तरफ मेला लगा, यह कैसा संसार ।
ढोल नगारे कैसे बजते, क्या कोई त्यौहार ।। ॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया।।

भीम अहिलवती को वचन सुनाये।
तुम ही बताओ हम कब आये ||
हम भोजन करते थे मगन में।
सत पकवान के स्वाद लगन में ||
भाई मेरे कहाँ गये हैं।
मुझको अकेला छोड़ गये हैं ||
नाम जगह का तुम बतलाओ
जल्द बताओ मत तरसाओ ||
नाग देव यहाँ कैसे आ रहे।
हँस हँस आँसू नैना बहा रहे |
अहिलवती संकोच कर रही।
हिम्मत करके बतियां कर रही ॥
अपना नाम बताओ प्राणी ।
किस कुल में जन्मे बलवानी ||
कितनी उमर आपकी होई।
तेज मुख पर उदासी छाई ॥
मात पिता का नाम बताओ ।
बतलाकर हमें सत्य जताओ ॥

दोहा :-
भीमसेन मेरो नाम है, पाण्डव कुल है जात ।
पाँच भाई हम एक वंश के, रहते हरदम साथ ।।
कुन्ती हमारी मात है, हस्तिनापुर है ग्राम ।
चाचा जाये कौरव भाई, नित करते संग्राम ।।


अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
भीमवली और कहवण लागे ।
गहरी नींद से कैसे जागे ॥
अब भी सर क्यों चकराता है।
हृदय क्यों कर घबराता है ॥
कौन दवाई हमने खाई।
हमरे तो कछु समझ न आई ||
कौरव पक्ष से न्योता आया ।
हमने जाकर भोजन पाया ॥
भाई भोजन करके गये थे ।
हम ही अकेले महल रहे थे |
अहि. धीरज धरलो हे बलवानी।
तुमने आकर की मेहरबानी ॥
नाग लोक इसको कहते हैं ।
राज यहाँ बाशक करते हैं ॥
मैं हूँ उनकी लाड दुलारी ।
करती थी तुमरी इन्तजारी ॥
बहुत दिनों से अभिलाषा थी ।
वचन भवानी की आशा थी ॥
माता ने मुझे श्राप दिया था ।
मैंने कछु अपराध किया था ॥
मरा हुआ तुझे पति मिलेगा ।
तब ही कली का फूल खिलेगा ||
बाग सभी गुलजार हो गया ।
कौन आय कर फूल बो गया ||
तुमरे संग कोई कपट किया था ।
भोजन के संग जहर दिया था ||
उमर तुम्हारी अति सुहानी।
नाग लोक में पाई जिंदगानी ॥

दोहा :-
भीम बली कहने लगे, समझ में आई बात।
कौन चीज संजीवन कीनो, उसको बताओ स्यात ।।
अमूल्य दवाई है कोई, दीनो जहर उतार।
पहले इसका भेद बताओ, फिर करियो श्रृंगार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परवल छाया ||
जल्द बताओ कौन दवाई ।
अब नहीं होती हमरे समाई ॥
भूख से व्याकुल काया हो रही ।
मुख से बोली काहे खो रही ||
मात भवानी का जो कहना।
बाद में सोचूंगा क्या करना ॥
अहिलवती के खुशी है छाई ।
अमृत पान से करी दवाई ॥
कुण्ड के कुण्ड भरे हैं सारे ।
पहरा देते हैं हलकारे ||
आओ संग चलो तुम हमारे ।
अमृत पीओ राज दुलारे ॥
अहिलवती संग भीम पधारे।
अमृत कुण्ड को नजर पसारे ||
भीम को भूख लगी है सयानी ।
अमृत पीने लगा बलवानी ॥
गट गट पीवे होय मगन में।
और पीऊंगाा याही लगन में ॥
दो तीन कुण्ड जब खाली हो गये।
नाग देव सब सुध बुध खो गये |
ये क्या ऐसा है बलवानी ।
आखिर मृत्यु लोक का प्राणी ॥
सब सर्पों ने हमला कर दिया।
भीम ने सब को दूर कर दिया ||
अहिलवती ने आवाज लगाई।
जगह खड़े रहो सब ही सिपाई ॥
पीने दो अमृत मन चाहा ।
अहिलवती करे वाहा ! वाहा ! ॥

दोहा :-
सब कुण्ड खाली कर दिये, भर लिया पेट सुजान ।
थोड़ा अमृत बाकी रह गया, कहे भीम बलवान ।।
राजकुमारी तुम कहो, सब करूं अमृत पान ।
पर इच्छा है पूर्ण हमारी, कर दई दया निधान ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बाशक जी सब देख रहे थे।
दूर खड़े कुछ सोच रहे थे।
जोर से फिर आवाज लगाई।
दौड़ के आओ सभी सिपाई ॥
‘नाग देव सब दौड़ के आये।
बाशक जी सबको समझाये ॥
अमृत झूठा हो गया सारा ।
साफ करो कुण्डों का किनारा ॥
बचे हुए अमृत को निकालो।
देग पड़ी हैं उनमें डालो ||

मृत्यु लोक में लेकर जाओ ।
सब अमृत गऊओं को पिलाओ ||
इसमें भूल न होने पावे ।
बाशक जी खड़े हुक्म सुनावे ॥
हुक्म पाय कर चले सिपाई ।
मृत्यु लोक की लेकर राही ॥
सब अमृत गऊओं को पिलाया ।
गऊ मूत्र जब शुद्ध बताया ||

दोहा :-
हाथ जोड़ बाशक कहे, सुनो भीम बलवान ।
और कुछ सेवा हो कहिये, हाजिर हैं मेरे प्रान ||
विनय हमारी अब सुनो, अन्तर धरके ध्यान।
सत वंशी तुम राज दुलारे, बल में चतुर सुजान ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
मात भवानी वचन दिया है।
मरे हुए को जीवित किया है |
लाड दुलारी मेरी प्यारी ।
तुमरे चरण की बने पुजारी ॥
बहुत दिनों से बाट जोवत है ।
बहुत मनाऊँ पर रोवत है |
मरा हुआ नहीं जीवित है होता।
मैं कहता यहाँ सब कुछ होता ॥
लीलाधारी की है माया ।
उनका जीवन उनकी काया ||
सब इच्छायें पूर्ण हो गई।
बहुत दिनों तक बाट जोह लई ||
अब तुम हमरा कहना करो जी।
बेटी की मांग सिन्दूर भरो जी ॥

दोहा :-
अहिला मन में मुल्लक मुल्लक, सुन रही सारी बात ।
पर कछु भी बोले नहीं, आखिर औरत जात ।।
बाशक भीम को कह दई, आये तुम प्रभात ।
तब से ही तुम मेरी बेटी के, होय गये हो नाथ ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
भीम ने सोच समझ के विचारी ।
बाशक जी सुनो बात हमारी ॥
माता की आज्ञा लेनी पड़ेगी।
भाई जी को कहनी पड़ेगी ॥
उनकी आज्ञा लेके कहूँगा ।
जो कुछ कहते सारी सहूँगा ||
अब जाने की आज्ञा देवो ।
हमसे चाहे वचन भी लेवो ॥
बाशक जी कछु समझ न पाये ।
रुक रुक के सब भेद बताये ॥
महायज्ञ है कन्या दान का ।
कहा हुआ है खुद भगवान का ||
बेटी के मात पिता हो राजी।
क्योंकि है जीवन की बाजी ॥
सौंप रहे प्राणों की आशा ।
वर की चाहिये एक अभिलाषा ||
पहले वचन तुम्हारे कह दो।
हमरे हृदय में आशा भर दो ||

भीम ने बात कही वही प्यारी।
हमरी संरक्षक मात हमारी ॥
उनकी आज्ञा से ही कहूँगा ।
पर अब यहां पे नहीं रहूँगा ||

दोहा :-
अहिलवती ने आयकर, पकड़े भीम के पांव ।
तुम ही हो जीवन मेरे, तुम ही दया की छांव ।।
तुझ बिन मेरा दूसरा, नहीं कोई आधार ।
तुम ही मेरी मांग के, उजले हो शृंगार ।।

भजन
(तर्ज दिल देता है रो-रो दुहाई)

यूँ करती है रो रो के विनती, अहिलवती भीमसेन से ।
निज व्याह की बात वो करती, अहिलवती भीमसेन से ।।

तुम ही हमारे नाथ बनोगे, तुम ही हमारी माँग भरोगे ।
मैं तो तुमसे ही चाह ये करती, अहिलवती भीमसेन से ।।

तुमसे ही श्रृंगार है मेरा, जन्म-जन्म का है ये फेरा ।
मेरी तुमसे ही डोर है बँधती, अहिलवती भीमसेन से ।।

माँ गौरा ने श्राप दिया था, फिर शिव ने वरदान दिया था ।
कह भीम के पाँव वो पड़ती, अहिलवती भीमसेन से ।।


अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
छोड़ अकेली कहाँ जाओगे ।
फिर तुम मुझको नहीं पावोगे |
प्राणों का मैं त्याग करूंगी।
मांग तिहारे पांव धरूंगी ॥
और दूसरा कोई न चारा ।
कहना मानो नाथ हमारा ॥
तुम बिन सूनी है ये जगती ।
तुमरी आज्ञा मेरी भक्ति ॥
जो कछु कहना साँच कहोगे ।
नाग लोक में आप रहोगे |
नाग देव सब इक संग बोले ।
फण लुल्ल-लुल्ल चरनों में डोले ||
हे बलवानी कहना मानो।
हम को तुम पायक ही जानो ॥

दोहा :-
भीमसेन कछु सोच कर सब को करी प्रणाम ।
तुमरा कहना सत्य वचन है, तुमरे हृदय राम ।।
कई दिनों से थक रहा, चाहूँ मैं विश्राम।
सत्य कहूँ चाहे जग रूठे, अर्जुन साथी श्याम।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
पहुँचे महलां भीम सत धारी ।
विश्राम करन की हृदय विचारी ॥
महलों में एक बंगला प्यारा ।
चारों तरफ है बाग किनारा ||
पलंग बिछा है राज घराना ।
बाग बीच में शाही खाना ॥
भीम लेट गये मगन होय कर ।
अहिला कर से चरण धोय कर ॥
नौकर चाकर पहरेदारी ।
नाग देव करते मनवारी ॥
फल मेवे से थाल सजे हैं।
भीम तो अमृत से रीझे हैं ॥
हवा झरोखे फूल सजाये ।
भंवरों ने आ साज बजाये ||
मन्द हवा जो मन को भावे ।
मीठे मीठे स्वर में गावे ।।
भीम नींद की गोद में सोये ।
पहरेदार पहरों पर होये ॥

दोहा :-
बाशक जी कहने लगे, अहिला सुन मेरी बात ।
अटल उजालो ही रहे, तेरो सुहाग प्रभात ।।
विश्राम करो तुम महलों में, सखियां जोवें बाट ।
मुझको तैयारी सब करनी है, तेरे विवाह का ठाठ।।

तृतीय पाठ

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
पहरेदार सब चौकस रहियो ।
मन की इच्छा मुझको कहियो ||
अपने लोक में कोई आवे ।
दखल नींद में जो पहुँचावे ||
तुरन्त हमारे पास में आइयो ।
उसको इज्जत के संग लाइयो।
हर कोई नहीं घुसने पावे ।
बाशक जी सबको समझावे ॥
रात सुरीली चांदनी चमके ।
चन्द्र मणि की किरणा दमके ॥
अमृत कुण्ड के सख्त है पहरा ।
शहर के चारों ओर ही गहरा ॥
दरवाजे जो चार बनाये ।
उन पर पहरे खूब लगाये ॥
नाग देव का नगर निराला ।
जिसमें मोहना शिव का शिवाला ॥

दोहा :-
आधी रात थी ढल गई, नींद पहर के बीच ।
फूल सुगन्धी छा रही, जाये हर कोई रीझ ॥
सन्त साधु को रूप धर, ब्रह्म देव अवतार।
आया चलकर बड़ी दूर से, सुन हे पहरेदार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
नाग देव एक पहरेदारी ।
उस साधू से अर्ज गुजारी ॥
रात्रि समय तुम क्या करते हो ।
हे योगी तुम कहाँ रहते हो ॥
शहर में घुसना सख्त मना है।
बाशक जी का यही कहना है ॥
उनसे मिलना हो तो पधारो ।
वरना जो कहते हो पुकारो ||
साधु ने एक सूझ विचारी ।
सत्य है कहना पहरेदारी ॥
एक बात तुम मुझको बताओ ।
साची कहना वचन सुनाओ ||
नाग लोक में कोई प्राणी ।
गौर वदन है और बलवानी ॥
आया है या नहीं आया है।
इसका भेद नहीं पाया है ॥
उसके चार और हैं भाई ।
बहुत तरसते दर्शन तांई ॥
भेद लगाने मैं आया हूं।
दूर बाट भी थक पाया हूं ॥
पहरेदार मन में विचारी ।
ये साधू कोई है छली हारी ॥
विष से मरा मेहमान हमारा।
उसी वंश का है छल गारा ॥

दोहा :-
पहरेदार भर क्रोध में, बात सुना दई एक ।
बाशक से मिलना तुम्हें, चलो शहर को देख ||
वरना यहाँ से चल देवो, मैं नहीं जानूं और ।
कौन बली यहाँ पर आया, कैसा मचाया शोर ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बाशक पास चलो पहरेदारी ।
सब इच्छा हो पूर्ण हमारी ॥
आगे आगे पहरेदारी ।
पीछे साधू वीणा धारी ॥
बाशक जी ने आवत देखा ।
नारद जैसी झलक की रेखा ॥
दूर से दौड़ प्रणाम किया है।
नारद ने आशीष दिया है ॥
आओ आओ नारद देवा ।
हुक्म करो मेरे लायक सेवा ॥
हम थारे चरणों के पुजारी ।
रात्रि समय क्यों सुरत विचारी ॥
क्या पूछेंगे मन की बतियाँ ।
खोजत ही कटती हैं रतियाँ ॥
एक रोज यों ही मन में धारी ।
बुला रहे थे कृष्ण मुरारी ॥
पहुँच गया मैं उठके सवारी ।
हस्तिनापुर में मिले मुरारी ॥
पाण्डु पुत्र थे सोच में भारी ।
भाई था उनका बलधारी ॥
कौरव ने कोई कपट किया था।
भोजन मांही जहर दिया था |
पता नहीं उस बलवानी का ।
देख दुःख वहाँ सब प्राणी का ||

भेद लगाने मैं आया हूँ ।
कहो सुना है यहाँ पाया हूँ ॥
अहो भाग्य जो आप पधारे ।
कारज सिद्ध हुए अब सारे ॥
पहले आओ अमृत पीवो।
जग की भलाई खातिर जीवो ॥
सेवक अमृत और संग मेवा ।
लेकर आये पीवो देवा ॥
अब इक बात हमारी अर्जी।
हाँ जो करो तो थारी मर्जी ॥

दोहा :-
नारद जी कहने लगे, अमृत प्याला पीव ।
सब की इच्छा पूर्ण होती, देव प्राणी क्या जीव ।।
हे बाशक क्या बात है, भेद बताओ खोल ।
मैं तो अति प्रसन्न हूं तुम पर, कर लो चाहे कोल ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
एक रोज श्री अम्बे भवानी ।
पार्वती जी कमला रानी ॥
नाग लोक में पधारी माता ।
हे मुनि देव मैं सत्य सुनाता ॥
अहिलवती बेटी है तुम्हारी ।
मेरी ममता की जो दुलारी ॥
शिव की पुजारन अन्तर्ध्यानी ।
नित्य नियम की चतुर सुज्ञानी ॥
अनहोनी ने कदम बढ़ाये |
शिव पर बासी पुष्प चढ़ाये ॥
श्राप दे दिया अम्बे भवानी।
मरा पति तुम्हें मिलेगा रानी ॥
पाण्डु वंश का राज दुलारा ।
बन गया वो जीवन का सहारा ॥
जीवित हो गया यहाँ पे आकर ।
महलां सोवे देखो जाकर ॥
हमने उससे विनती गुजारी।
वो करता है साफ इन्कारी ॥
तुमरी बेटी जब जागेगी।
पति बिना जीवन त्यागेगी ॥
उसने समझ लिया है सहारा ।
हे मुनी देव कहो क्या विचारा ||

दोहा :-
अर्जी तुमरी सुन लई, जायज राखी मांग ।
तुमरे कारण अभी रचूंगा, एक अनोखा सांग ।।
मैं समझाऊंगा उसे, नहीं होगा इन्कार ।
अहिलवती से जाकर कहदो, जल्द करे श्रृंगार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
भोर हो गई सूरज चमका।
पीला बादल दम दम दमका ॥
भीम उठा और नींद है त्यागी ।
बलवानी और है बड़ भागी ॥
भोर नियम के कारज कीना ।
शिव के चरणामृत को लीना ॥
नारद जी भी सन्मुख आये ।
मधुर वीणा झनकार बजाये॥

 

भीम देख कर राजी हो गये।
जो भय मन में सारा खो गये ||
हाथ जोड़ प्रणाम करी है।
फिर एक ऊँची आह भरी है ॥
मत घबराओ कुन्ती लाला ।
तुम को खोजत पड़ गये छाला
देख लिया मैंने जग सारा।
मिला नहीं कुन्ती का प्यारा ॥
तुमरे भाई चिन्ता करते ।
सुन सुन अफवा मन में डरते ||
लेकिन चिन्ता सारी त्यागो।
भूल की नींद से जल्दी जागो ॥
अम्बे भवानी के वचन पुगाओ ।
नाग लोक में खुशी जगाओ ||
वरना श्राप तुम्हीं पर आवे।
फिर बचना मुश्किल हो जावे ॥
तुम जो कहोगे वो ही होगा ।
तुरन्त बताओ हमरे जोगा ॥


दोहा –
माता की आज्ञा बिना, कैसे करूँ मन्जूर ।
तुमरी आज्ञा शिरोधार्य है, करो मेरा भय दूर ।।
भाई जी कहीं रूठ कर, कह दें खारी बात ।
इसका उत्तर तुम ही दे दो, तुम भी हमारे नाथ ||

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
नारद नारद जी ने बात जताई ।
भेद नीति सारी बतलाई ॥
तुमरी माता और भाई को ।
भेद देऊँ तुमरी पाई को ।।
उनकी बात मेरे पर छोड़ो।
तुम तो वर के वस्त्र ओढ़ो ॥
जो कछु कहना मुझसे कहेंगे।
हम सब अपने निज पे सहेंगे |
तुमरा कोई कसूर ना गावे ।
सब कुछ भेदी हम को बतावे ||
मैं जाकर सब हाल कहूँगा ।
विवाह तलक मैं यहीं रहूँगा ॥
फिर तुम मृत्यु लोक में आना ।
अहिलवती को संग में लाना ॥
बाग में फूल खिले भरपूर।
पंचवटी से थोड़ी दूर ॥
वहां शिवालय अति सुहाना ।
वहां पे रहना तुम बलवाना ||
अहिलवती वहाँ पूजा करेगी।
शिव के कलश में जल भी भरेगी ॥
जब इच्छा हो घर को जाना।
माता भाई के दर्शन पाना ॥

दोहा –
आज्ञा सब मन्जूर है, सुनो देव मुनि राज।
वर के वस्त्र और सेवरा, जल्द मंगाओ ताज ॥
अर्धांगिन अहिलवती, मुझको है मन्जूर।
तुमरी आज्ञा ही जोऊं था, छाई खुशी भरपूर॥

 

अखण्ड ज्योतं है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
नाग लोक में खुशियाँ छाई ।
घर घर मांही गाएं बधाई |
सखियाँ सारी बाग में आई ।
अहिलवती को संग में लाई ॥
श्रृंगार पेटियाँ सजी हुई हैं।
बाग बीच सब रखी हुई हैं ॥
नारद भीम महल में आये।
बाशक जी के अति मन भाये ॥
भांति भांति की बनी मिठाई ।
कंचन थाल में धरी सजाई ॥
नारद भीम जी भोजन पाये ।
बाशक हाथ से पंखा डुलाये ||
सेवक खड़े करें मनवारी ।
नाग कन्या दुल्हन की तैयारी ॥
सखियां अहिला से बतलावें ।
हाथ में मेहन्दी मोहनी रचावें ॥
माथे बिन्दी मांग भरी है ।
प्रकृति हो गई हरी भरी है ॥
बाल बाल में मोती पोये ।
हार अलोका मन पर सोहे |
श्रृंगार सजाया सुन्दर भारी ।
कर रहे नारद मण्डप तैयारी ॥


दोहा –
नाग लोक में बहार थी, छवी है अपरम्पार ।
बजे शहनाई मोहनी, घर घर मंगलाचार ।।
नाग देव सब मगन होय, फिरत खुशी में झूल ।
सब ने पहने हार गले में, तरह तरह के फूल ।।


भजन
(तर्ज-कामण)

भीमबली तो अहिलवती के संग में व्याह रचावै राज ।
नागलोक में खुशियाँ छाई, सब कोई मंगल गावै राज ।।

अहिलवती की सारी सखियाँ, दुल्हन इसे बनावै राज ।
बाल बाल में मोती पोवै, हार-शृंगार सजावै राज ।।

शादी की शहनाई बाजे, ढोल नगाड़ा बाजै राज ।
नाग-नागिनी नागलोक में, खुश होकर के नाचै राज ।।

नारद जी तो मंत्र उच्चारै, देव पुष्प बरसावै राज ।
अग्नि की साक्षी में पावन, गठ बन्धन बँध जावै राज ।।

रानी के संग बाशक राजा, कन्या दान करावै राज ।
आशीष देवे नव-दम्पति को, अमृत खूब पिलावै राज॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
मण्डप सजा के वेदी रचाई।
सब सामग्री नियम सजाई ॥
सखियां गीत सुनहरा गायें ।
अहिलवती को दुल्हन बनायें ॥
मण्डप ऊपर भीम पधारे।
नारद जी विधि मन्त्र उच्चारे॥
अग्नि प्रगट हुई इक पल में।
साक्षी बनने नभ जल थल में॥
बजी शहनाई मोहनी वानी।
ढोल नगारे स्वर सुरज्ञानी॥
सखियों के संग कन्या आई।
भीम के वामांग बिठाई॥
नाग मणि की किरण सवाई।
अहिला के बालों में सजाई॥
चन्द्र किरण से मोहनी छाई।
नारद जी के अति मन भाई॥
विधि विधान से मन्त्र उच्चारे।
नाग देव जय जयकार पुकारे॥
बाशक अर्धागिनि संग आये।
कन्या दान का संकल्प कराये॥

दोहा:-
अग्नि साक्षी लेयकर, भीम प्रतिज्ञा धार।
नारद ने हथलेवो कियो, रच्चो नयो संसार॥
सात परिक्रमा भर दई, अग्नि के चारों ओर।
अहिलवती पति चरण को, धोय हाथ को जोर॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
नाग देव सब फूल चढ़ावें।
हुक्म होय वहीं कदम बढ़ावें॥
नाग कन्याएं गीत गा रहीं।
मन को मोहनी लहर छा रहीं॥
मण्डप कारज सुन्दर भारी।
अहिला भीम की जोड़ी प्यारी॥
नाग कन्याएँ ले बलिहारी।
मन में करती बात विचारी॥
पति होवे तो हो बलधारी।
वरना रहना चाहिए कुँवारी॥
नाग कन्याएँ थाल सजावें।
पायल की झंकार बजावें॥
थाल में फूल और दीप सारथी।
वर कन्या की करें आरती॥
गठ जोड़े संग महल पधारो।
सखियाँ कहें धन भाग हमारो॥
अहिला भीम महल में आये।
चन्द्र सूरज भी देखन छाये॥
देव लोक में बजी शहनाई।
बाशक कन्या हुई पराई॥
देवन ने आ फूल बरसाये।
भांति भांति के शंख बजाये॥
शिव संग पार्वती बतलावें।
महादेव मन में हर्षावें॥
अहिला हमारी लाड दुलारी।
सुनो पार्वती बात हमारी॥

इसकी कोख से देव अवतारी।
प्रगट होवेगा महा बलधारी॥
शिव पार्वती बात विचारें।
नारद जी बाशक को पुकारें॥
सुनो बाशक अब बात हमारी।
हमरी चलने की है तैयारी॥

दोहा:-
हस्तिनापुर में जाय कर, खबर करूं सब कोय।
तुमरी इच्छा पूर्ण हो गई, और कहो कुछ होय॥
भीम कहे वैसा करो, तुम स्वतन्त्र हुए आज।
हमने सब समझा दिया, भीम का सारा काज॥

इतना कह कर नारद जी नारायण नारायण बोल, वीणा के मधुर स्वर में मगन होय हस्तिनापुर की ओर चल दिये, रास्ते में उनको श्री कृष्ण भगवान मिले।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
कहो नारद जी कहाँ से आये।
भीम बली का भेद भी लाये॥
आप निराशा लेकर आ रहे।
आपके चेहरे के भाव बता रहे॥
कहाँ कहाँ पहुंचे ये समझाओ।
रोली तिलक का भेद बताओ॥
किसने तिलक लगाया देवा।
किस यजमान ने कर दी सेवा॥
नारद जी ने दण्डवत कीनी।
मुरली की बलिहारी लीनी॥
बोले हे जान प्रभु अन्तर्यामी।
सबके प्राणों के तुम स्वामी॥
जान बूझते हमसे कहते।
कौन जीव जो आप से छुपते॥
भोला बनकर भरम फैलावो।
घट घट वासी तुम कहलावो॥
कोई छुपा नहीं आपसे प्राणी।
अज्ञानी और बुद्धिमानी॥
नारद जी का भरम भगाया।
चतुर्भुज रूप धरा सुहाया॥
अन्तर्यामी वचन सुनाये।
चक्र सुदर्शन ऊंगली धाये॥
हे मुनि राज ब्रह्म के ज्ञानी।
नाग लोक जब गई भवानी॥
जो श्राप अहिला ने पायो।
भीमसेन के समझ न आयो॥
आप को भेजा बात सुधारी।
वरना अहिला रहती कुँवारी॥
शिव भोले जी मगन होय कर।
बाशक की सेवा में खोय कर॥
दीनो आशीष भविष्य विचारा।
कलियुग जीव के लिए सहारा॥
बाशक पुत्री है महारानी।
गोदी से प्रगटे देव बड़ दानी॥
जन्मे लाल बल में बलधारी।
प्राप्त करे छवि मेरी सारी॥
रूप चतुर्भुज मेरी परछाई।
देव रूप शक्ति संकलाई ॥

कलियुग में अवतार धरेगी।
प्राणी हृदय निज धर्म भरेगी॥
अभी आप हस्तिनापुर जाओ।
कुन्ती बुआ को धीर बंधाओ॥
इतना कह कर अदृश्य हो गये।
नारद जी वीणा में खो गये॥

दोहा –
नाग लोक खुशियां लिये, होता रहा गुलजार।
भीम अहिला आनंदित हो, कर रहे बात विचार॥
मृत्यु लोक में जायेंगे, उदय होत प्रभात।
वहाँ रहेंगे कुछ दिन, फिर सौ बात सो बात॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
अहिला मन्द मन्द मुस्काई।
चरणों ऊपर नजर टिकाई॥
आपकी आज्ञा अब मानूंगी।
आज्ञा ही प्रभु को जानूंगी॥
हुक्म सभी हर पल में निभाऊँ।
कहो तो दास दासी ले आऊँ॥
भीम के सूझ में जल्दी आई।
तुमरी इच्छा सब से सवाई॥
चार दूत तुम संग में ले लो।
निज वंश कुल के ले लो॥
और कछु हम नहीं ले जावें।
बाशक जी को भेद बतावें॥
चलें शीघ्र ही करें प्रस्थाना।
बलधारी कहे अल मस्ताना॥
अहिला पिता के पास में आई।
पति देव की बात बताई॥
निज सेवक दिये चार सिपाही।
इन जैसा कोई बल में नाहीं॥
मारे डंक पहाड़ उजाड़े।
बैरी को तो जड़ से उखाड़ें॥
हाथ जोड़ अहिला के आगे।
खड़े पुकारें भाग हैं जागे॥
पति चरणों में दौड़ के आई।
संग में चार सिपाही लाई॥
चलो देव मैं संग तुम्हारे।
दाना पानी जहां हमारे॥

अहिलवती और भीम का मृत्यु लोक में पहुंचना
दोहा –
पंचवटी के पास ही, नारद बताओ स्थान।
ढूँढ लियो है भीमबली ने, सुन्दर अति महान॥
शिव को शिवालय मोहनो, छाई छवि बहार।
अहिलवती मन भावनो, हरियों भरयों गुलजार॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
पास में झरना झर झर बहता।
स्वर में शिव शिव हर हर कहता॥

जल धारा ऊँचे से गिरती।
भंवरी खाती लहरें फिरती॥
बियाबान जंगल अति प्यारा।
पंख पखेरू का ये सहारा॥
एक तालाब बना है सुहाना।
जल झरने का आना जाना॥
झरने का जल इसमें आता।
दूजे किनारे से बह जाता॥
चारों तरफ हैं पहाड़ घनेरे।
जीव जन्तु करते हैं बसेरे॥
भीम अहिला दोनों आये।
झरने पास में डेरा लगाये॥
मन में उपजी करते बतियां।
क्रीड़ा करते कटती रतियां॥
अहिला नियम से भोर होवत ही।
शिव पूजा में ध्यान जोवत ही॥
झरने का जल कलश चढ़ावे।
शिव स्तुति में स्वर को बढ़ावे॥
सेवक चार हैं पहरेदारी।
जो बल में हैं अति बलधारी॥
अहिलवती का कहना करते।
महाकाल से ये नहीं डरते॥
पुष्प सुगन्धित बड़े महकते।
तितली भंवरे पक्षी चहकते॥

दोहा:-
एक रात बली भीम संग, अहिला बात बताय।
इतने में एक ऊंची मोटी, गई राक्षसी आय॥
पत्थर फेंके पेड़ उखाड़े, गर्जन करती जोर।
गूंज उठी जंगल दहलाया, किलकारी का शोर॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
भीम ने देखा है कोई जंगली।
नारी नहीं यह है कोई पगली॥
इसको मौत खींच लायी है।
हमरे सन्मुख चिल्लायी है॥
बोली अहिला विनती करके।
पति चरणों में ऊंगली धरके॥
ये कोई राक्षसी है अभिमानी।
मांसाहारी पापिनी दानी॥
सेवकों ने आ अर्ज सुनाई।
क्या आज्ञा है म्हारी बाई॥
अहिला बोली सत्य धर्म पर।
मर्यादा और नीति कर्म पर॥
नारी पर नहीं हाथ उठाओ।
अपनी अपनी जगह में जाओ॥
नर की भक्षणी पास में आवे।
भीम के क्रोध घनेरा छावे॥
पास में आई वो अभिमानी।
बोली गरज के क्रोध की वानी॥
बहुत दिनों से भूख सतावे।
मिल गया भोजन मन ललचावे॥
नर और नारी संग में पाये।
राक्षसी ने कदम बढ़ाये॥

भीम उठा फिर गर्जना करके।
रोक लिया अहिला ने पकड़ के॥

दोहा:-
अहिला चल दई सामने, दोनों भुजा फैलाय।
क्रोध में और राक्षसी मचली, जोर जोर चिल्लाय॥
अहिलावती ने आय कर, पकड़े उसके केश।
पटक पछाड़ी धरणी ऊपर, करदी भेष कुभेष॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया
श्याम देव की परबल छाया ॥
राक्षसी ने भागने की सोची।
अहिला ने गर्दन को दबोची॥
भींची गर्दन और चिल्लाई ।
छाती ऊपर लात जमाई॥
पकड़े केश घसीट के लाई।
पति चरणों में लाय गिराई॥
हुक्म करो मेरे देव दयालु।
क्या करना है इसका कृपालु॥
रोवे राक्षसी मुझे छोड़ दो।
फिर नहीं आऊँ पीठ मोड़ दो॥
भीम ने अपने वचन सुनाये।
देखो अब कितनी पछताये॥
माफी देवो अब मेरी रानी।
बख्शो इसकी अब जिन्दगानी॥
अहिला बोली लात जमाकर।
भाग यहाँ से मुँह को छुपाकर॥
चली राक्षसी दौड़ती जावे।
मुड़ मुड़ हाथ को जोड़ती जावे॥
ये नारी कोई है बलधारी।
भागती सोचती करती विचारी॥

दोहा :-
भोर हुई मन मोहनी, उठे नींद को त्याग।
अहिला आय शिवालय पहुँची, गावे मधुरी राग॥
भीम भोर के नित कर्म, कर रहे मगन में होय।
झरने के जल स्नान करे, उठे है जब भी सोय॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
भीम ने शिव के पुष्प चढ़ाये।
अहिलवती को भेद बताये॥
अब मैं हस्तिनापुर जाऊँगा।
याद करोगी जब आऊँगा॥
ये हैं वचन हमारी रानी।
आय मिलूंगा जब मन मानी॥
अहिलवती ने हाथ बढ़ाये।
पति चरणों पर पुष्प चढ़ाये॥
बोली मन्द मन्द मुस्काकर।
तुम नहीं आओगे फिर जाकर॥
आश औलाद की हुई निशानी।
दर्शन कर लेते बलवानी॥
कन्या बालक जो भी होवे।
याद तुम्हारी पाकर रोवे॥

कैसे धीर बंधाऊँ देवा।
कुछ दिन और भी करती सेवा॥
बोले भीम मुग्ध हो वानी।
निश्चय आऊँगा मेरी रानी॥
बालक होगा अति बलवानी।
सुन्दर बुद्धि चतुर सुजानी॥
शगुन हमारे सच्चे होते।
ठोस सबल और पक्के होते॥
कह कर चले भीम बलवानी।
हस्तिनापुर की राह पहचानी॥
ऊब ऊब कर अहिलवती देखे।
मुड़ मुड़ करके भीम भी देखे॥

दोहा:-
सेवक चारों पास में, अहिला खड़ी उदास।
ठण्डी आहे हृदय उछले, फिर भी मिलन की आस॥
नैना आसूं पोंछ कर, धार लियो है धीर।
जब भी आवें इच्छा होवे, जन्म जन्म को सीर॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
घोरी राक्षसी जो अभी आई।
अपने पति को बात बताई॥
इस वन में इक नारी आई।
संग में एक पुरुष को लाई॥
पुरुष जा रहा छोड़ अकेली।
भीम की सूरत राक्षस देख ली॥
यही पुरुष है उसका साथी।
और नहीं कोई दूजा नाती॥
डूंडा राक्षस था अभिमानी।
घोरी राक्षसी जिसकी रानी॥
इस वन के ये दोनों पायक।
और दूसरा कोई न लायक॥
अहिलवती शिव मन्दिर आयी।
फूल चढ़ावे भीम के तांही॥
हे शिवशंकर हे त्रिपुरारी।
महादेव भोले भण्डारी॥
पति मेरे को जल्द मिलाओ।
इसी शिवालय फिर बुलवाओ॥
खड़े सेवक हैं पहरेदारी।
नाग लोक के ये फणधारी॥

दोहा :-
बाशक पहुँचे ढूँढते, आय वन के मांय।
वशीभूत हो प्रेम के माहीं, चल कर आये पांव॥
सेवक ने पहचान कर, करी प्रणाम कर जोड़।
आओ पधारो नागदेव जी, अहिला शिवालय ओर॥

भीम बली के चले जाने के बाद अहिलवती उदास हो जाती है और विरह का गीत गाती है :-

भजन
(तर्ज कागलिया म्हाने ना सतावो जी)
पुरवईया संदेशा ले जावो जी….
मेरे प्रीतम जी गये हैं परदेश,
जा कहियो, अहिला याद करै ॥टेक ॥

जब से गये हैं, खबर न आई,
दिल भर आया, आती, रूलाई,
मुझे आकर, धीर बँधाओ जी,
मेरे प्रीतम ॥१॥

देना संदेशा, उनकी ये दासी,
दरश दिवानी, दर्श प्यासी,
मुझे आकर, दर्श दिखाओ जी,
मेरे प्रीतम ॥२॥

पाण्डव कुल में जा, उनको सुनाना,
हालत मेरी ये उनको बताना,
मुझे आकर, संग ले जाओ जी, मेरे प्रीतम ॥३॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
सेवक जोर आवाज पुकारें।
देखो अहिला कौन पधारें॥
पिता को देख अहिला भागी।
शिव की लगन से फौरन जागी॥
आकर लिपट गई भर बथियां।
बोली राजी होंगी सब सखियाँ॥
मुझको याद करत हैं नाहीं ।
भेजूँ संदेश सखियाँ के ताही॥
मेरी माता क्यों नहीं आई।
क्यों नहीं लाये सुध बिसराई॥
बोले बाशक धीरज धर कर।
आँखों में आँसू को भर कर॥
सखियां सारी मौज उड़ायें।
तुमरी याद को नहीं भुलायें॥
माता तुमको याद करत है।
मिलन के ताहीं आह भरत है॥
मैं तो अकेला चल कर आया।
संग किसी को मैं नहीं लाया॥
हमरे जवाई कहाँ गये हैं।
अहिला के तब आँसू बहे हैं॥

दोहा –
चले गये वो छोड़ कर, अपने निज स्थान ।
मेरी रक्षा खातिर छोड़े, महादेव भगवान॥
फिर कब चल कर आयेंगे, कीन्हो कोल करार।
हमतो यहीं रहेंगे बाबुल, हमरो ये ही संसार॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
बाशक जी ने धीर बंधाया।
पति पूजन का भेद बताया॥
पति की आज्ञा सब कुछ जानो।
जब तक प्राण रहें यही मानो॥

आज्ञा उल्लंघन कभी न करना।
कह के गये हैं यहीं पे रहना॥
मैं भी कभी कभी आऊँगा।
तुमरी माता को संग लाऊँगा॥
जो कछु चाहिये मुख से कहना।
शंका कभी नहीं तुम करना॥
सुनो पिताजी बात हमारी।
कछु नहीं चाहिये सुन ली तुम्हारी॥
तुम दर्शन कभी देते रहना।
माता को सब बतियाँ कहना॥
शिव पूजा में ध्यान हमारा।
वो ही है मेरा अटल सहारा॥
आप कभी नहीं चिन्ता करना।
मिल गया नाथ अब काहे डरना॥

दोहा:
बाशक जी सर हाथ धर, अहिला को समझाय।
सेवकगण से बात कर, धीरज दे बतलाय॥
भीड़ पड़े पर याद कर, तुरत लियो बुलवाय।
मैं जाऊँ अब नागलोक को, दीजो संदेशा भिजवाय॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परवल छाया॥
अहिलवती वन माँही घूमे।
गावे गीत मगन मन झूमे॥
पेड़ों पर चढ़ चढ़ कर बोले।
सेवक नागदेव संग डोले॥
कभी उस पेड़ कभी उस डाली।
शिव भक्ति में फिरे मतवाली॥
भीम के पद चिन्ह पास रहत हैं।
देख कभी आँसू भी बहत हैं ॥
जब चिन्तित हो राजकुमारी।
दौड़ के आवें पहरेदारी॥
मन मोहिनी ये राग सुनायें।
अहिलवती का मन बहलायें॥
सुबह शाम नित पूजा करके।
झरने का जल कलश में भरके॥
अपने पति का पद चिन्ह धोये।
चरणामृत ले राजी होवे॥

दोहा:
हूँडा राक्षस आय कर, धरयो भीम को रूप।
जहाँ अहिला पूजा करे थी, बैठ गयो बन भूप॥
अहिला ध्यान में मग्न थी, बैठी शिव दरबार।
आँख खुली जब सामने, ये कैसा संसार॥

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया॥
मैं आ गयो हूँ मेरी रानी।
बहुरूपी ने कह दी वानी॥
अहिला सोच समझ नहीं पाई।
अपनी नजर को एक टक लाई॥
बोले नहीं कछु मुख से उच्चारे।
देख खड़ी हो मन में विचारे॥

बहुरूपी ने कदम बढ़ाया ।
अहिला पांव को पीछे हटाया ॥
कहता रानी और वाहा वाहा।
हाथ पकड़ना जब वो चाहा ॥
अग्नि प्रगट हुई एक पल में ।
उमटी लपटें सन्मुख थल में ॥
राक्षस अपना रूप बनाया।
अग्नि की लपटों में वह आया ॥
राख बना दई उसकी काया ।
अहिला के तब समझ में आया ॥
घोरी राक्षसी भागी आई।
अग्नि ने उसे भी भस्म बनाई ॥
सेवक देखें ये सब माया ।
करनी का फल पल में आया ॥
अहिला शिव मण्डप पर आई।
अग्नि लुप्त होय मुस्काई ॥

दोहा
सेवकगण खड़े पास में, नाचें उछलें मौज ।
सती धर्म से भिड़कर पागल, अपना मिटाया खोज ।।
अहिला को धीरज दिया, लाये फल और मेव ।
खाओ दुलारी सीताफल को, लाल गुलाबी सेव ।।


श्री श्याम देव जी का अवतार लेना भजन
तर्ज (धमाल)

माता अहिलवती के आँगणियां में,
श्याम लियो अवतार, माता…
धरती झूमै अम्बर झूमै, झूम उठ्यो संसार ।। टेक ।।

भीमबली को पुत्र लाडलो,
पाण्डव कुल को उजियारो,
निर्बल को बल, निर्धन को धन,
सबकी पत राखन हारो,
दीनदयाल दया को सागर, करुणा को भण्डार ।।१।।

घुँघर वाला बाल श्याम का, रूप सलौनो प्यारो है,
दो नैणा अमृत का प्याला, मुखड़ो जादूगारो है,
लुण राई कर श्याम लला की, लेवाँ नजर उतार ।।२।।

शंख नगाड़ा बजे गगन में, 
देव पुष्प बरसावै है,
बर्बरीक नाम रख्यो बालक को,
नारद भेद बताये है,
हे माता तेरो लाल करेगो, दुनियाँ को उपकार ।।३।।

घर-घर बाँटो आज मिठाई,
ऐसो शुभ दिन आयो है,
सोने रो सूरज उग  आयो,
मन में हरष सवायो है,
झूमो नाचो खुशी मनायो, गावो मंगलाचार ।।४।।


अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती शिव पूजा कर के।
भोग लगावे मेवा घर के ॥
आश औलाद की इक अभिलाषा ।
दिन प्रतिदिन बढ़ती है आशा ॥
आयी शुभ घड़ी वो पल सोहना ।
प्रगट हुआ एक बालक मोहना ॥
अहिलवती के नैनों का तारा।
उदय हुआ ममता का उजारा ॥
प्रगट होत बलवान हो गया।
ममता के आँचल में खो गया ॥
भुजा विशाल और नेत्र लाल हैं।
चमकीले घुँघराले बाल हैं ॥
मोहना मुखड़ा तेज चमकता ।
माता के प्रति स्नेह झलकता ॥
गम्भीर चेहरे पर लाली चमके।
केश भंवर रंग लट खा दमके ॥
मुख पे नासिका शोभा दायक ।
अधर सुहाने सत के पायक ॥
वस्त्र है पहने आज्ञा पाकर ।
चरण लिपट गया शीश नवाकर ॥
देवन आकर शंख बजाये।
बांध कतार विमान सजाये ॥
नारद प्रगट हुए उस पल में।
स्वर्ग लोक से मृत्यु थल में ॥
अहिलवती ने शीश नवा कर ।
प्रणाम करी मुनि पास में जा कर ॥
अहिलवती का लाला आया।
मुनि चरणों में शीश नवाया ॥
नारद ने आशीष दिया है।
बर्बरीक मुख से नाम लिया है ॥
यही नाम मेरे मन भाया।
अहिलवती ने भेद बताया॥
गुरु मंत्रणां देवो देवा ।
ब्रह्मदेव की करूंगी सेवा ॥
बोले नारद धीरज वानी।
सत्य कहती हो हे क्षत्राणी॥
ब्राह्मण गुरु जगत के होते।
हर प्राणी के पाप को खोते ॥
स्नान करो हे बालक जाओ।
शीघ्र शिवालय मांही आओ ॥
बर्बरीक स्नान करने को धाये।
नारद अहिला शिवालय आये ॥

दोहा
नारद जी कहने लगे, कौरव कपट की जात ।
पाण्डु हार गये जूए में, लगी नहीं एक स्यात ।।
बारह वर्ष बनवास में, रहेंगे पाण्डु लोग ।
एक साल अज्ञात वास में, धरेंगे कोई जोग ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती ये वानी सुनकर ।
पड़ी धरण तिवाला खाकर ॥
नारद जी ने होश कराया।
ज्ञान दिया और धीर बंधाया ॥
बर्बरीक झरने पर आया।
देखा झरना मन हरषाया ॥
झरने पास खड़ा है लाला।
देख रहा जल को मतवाला ॥
नहाने की जब चित में आई।
जल की धारा अति सुहाई ॥
खोले वस्त्र तब महाबली ने।
सुन्दरता का छवि छली ने ॥
भुजा चमकती सूर्य किरण संग ।
शरमाई प्रकृति देख रंग ॥
बदन से किरणां खिल खिल लहरे ।
सूरज किरण संग उलझ के सहरे ॥
झरना भी अति मगन हो गया।
देखा बालक स्वर को खो गया ॥
जब जल बदन पे गिरता आकर ।
आलिंगन कर मन ललचा कर ॥
जल की बूंद बदन पे चमके ।
मानो मोती दम दम दमके ॥
मल मल खूब स्नान किया है।
बड़ी देर आनन्द लिया है ॥
झरने की जल धार पकड़ने। 
बाँहों से अति जोर जकड़ने ॥
उछल रहे हैं मचल रहे हैं। 
जल में किलोल कर रहे हैं ॥
अहिला ने आवाज लगाई।
बर्बरीक सुन दौड़   लगाई ॥

बीच शिवालय जल्दी आया ।
अहिलवती ने लाड लडाया ॥
बदन को पोंछा बाल संवारे ।
कहती जाती वाह रे दुलारे ॥
सिर पुचकार के गोदी चढ़ाया।
नारद जी के पास बैठाया ॥
बोले नारद मीठी वाणी ।
सुनो अहिलवती हे क्षत्राणी ॥
शिवजी साक्षी इस बालक के ।
देव शक्ति धारी चालक के ॥
शिव शिव रटना इसे सिखाओ।
मन वांछित फल निश्चय पाओ ॥
ये आशीष है अटल हमारा ।
महादानी हो लाल तुम्हारा ॥
यह तुमरी आज्ञा मानेगा ।
मात गुरु तुमको जानेगा ॥

दोहा
इतनी कह नारद चले, नारायण कह बोल ।
नाग देव खड़े पास में, मगन होय रहे डोल ।।
मां बेटे ने हाथ जोड़, मुनि को करी प्रणाम ।
फूलों की वर्षा हुई, प्रगटे देव श्री श्याम ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥

मेवा फल लाये पहरेदारी ।
लाकर भेंट करें मनवारी ॥

पहले शिव के भोग लगाया।
कर विनती चरणामृत पाया ॥
अहिलवती ने थाल  सजाया।
लाले को फिर पास बिठाया ॥
अपने हाथों से मेवा खिलावे।
निर्मल जल झरने का पिलावे ॥
अहिलवती दे ग्रास हाथ से ।
खावें माँ और बेटा साथ में ॥
बर्बरीक जो भी फरमावै ।
अहिलवती वही मेवा खिलावै ॥
बोले लाला मधुरी बोली ।
अहिलवती ने भर ली कोली ॥
तृप्ति भर फल मेवा खाये।
वन में गमन को वो उठ धाये ॥
चलें बात बतलाते  जावें ।
माता जी सब भेद बतावें ॥
गरजा शेर कहीं दूरी पर ।
गूँजा वन उपवन भूरी पर ॥
बोला लाला ये क्या बोला।
जंगल भी थर थर कर डोला ॥

दोहा
अहिलवती समझाय कर, भेद दिया बतलाय ।
वन में रहते कई जानवर, लाले को समझाय ।।
ये नौ हथा शेर है, करता जो आवाज ।
बोला बर्बरीक पकडूंगा, इतनी कह गया भाग ।।

।। चतुर्थ पाठ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बर्बरीक शेर के सन्मुख जाकर ।
राजी हो गया शेर को पाकर ॥
झपटा वीर गर्दन को पकड़ी।
बिन तलवार हाथ नहीं लकड़ी ॥
शेर सोहना बालक पाकर ।
लिपट गया वो पूँछ हिलाकर ॥
चढ़ गया बर्बरीक पीठ के ऊपर ।
शेर उछलता अपने बल पर ॥
अहिलवती जब दौड़ के आई।
शेर ने अपनी पूंछ हिलाई ॥
पीठ पे लाला चढ़ा हुआ है।
शेर तेज से दबा हुआ है ॥
बोला लाला आ मेरी माता।
ये तो जानवर मुझे सुहाता ॥
इस पर चढ़ कर दौड़ लगाऊँ ।
छुप कर वन में तुम्हें न पाऊँ ॥
एक जानवर ये ही पाया।
जिसके संग में खेल रचाया ॥
ऐसे शेर कहाँ पायेंगे।
उनको पकड़ यहाँ लायेंगे ॥

दोहा
अहिला स्नेह में डूब कर, ली बलिहारी सोय ।
मन में सोचे बलवानी के, पुत्र बली ही होय ।।
आवाज लगाई जोर से, शेर करी गुंजार ।
शेर शेरनी दौड़ कर आये, बाँध के लैन कतार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
शेर शेरनी पूँछ हिलाते।
गरजें तो जंगल दहलाते ॥
लाला देख के राजी हो गया।
शेर पे चढ़के खेल में खो गया ॥
शेर शेरनी आनन्द पावें ।
बर्बरीक संग खेल रचावें ॥
दौड़ करें किलोल उछाला ।
बर्बरीक हँसता मतवाला ॥
अहिला बोली फिर समझाकर ।
शिव पूजा का समय बताकर ॥
आओ बेटा देर होत है।
समय कभी नहीं बाट जोहत है ॥
साँझ की बेला अब घिर आई।
सूरज डूबत देवे ललाई ॥
शेर सभी अब घर जानेंगे।
भोर होवत ही आ जावेंगे ॥
पंख पखेरू ढूँढें बसेरा ।
रात आ रही लिए अन्धेरा ॥
शेरों ने गरजना लगाई ।
अहिलवती को प्रणाम पुगाई ॥
अपने घर चले बांध कतारें ।
जोर गरजना संग उचारें ॥

अहिला लाले को संग लेकर । 
चली शेरों को आशीष देकर
फूल लिये हैं शिव को चढ़ाने ।
समझा रही लाले को पढ़ने
पहरेदार सब बाट  निहारें। 
करें सफाई जगह बुहारें ॥
बर्बरीक संग अहिला आई।
सेवक गण के खुशियाँ देकर छाई ॥

दोहा
आसन बिछायो मौज में, शिव प्रतिमा के पास ।
पास बिठायो लाड़लो, जो जीवन की आस ।।
शिव स्तुति श्री गणेश से, कीनो मन्त्र उच्चार ।
हे शिवशंकर बम बम भोले, तुम्हीं मेरे आधार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
दोनों हाथ से पुष्प चढ़ाये ।
बर्बरीक ने भी हाथ बढ़ाये ॥
जैसे माता करती जावे ।
लाला शिव पे पुष्प चढ़ावे ॥
अहिलवती ने आरती कीनी।
बर्बरीक ने बलिहारी लीनी ॥
हर हर हर महादेव पुकारें ।
माँ और बेटे संग उचारें ॥
निर्मल जल का कलश चढ़ाया।
बर्बरीक ने भी हाथ बढ़ाया ॥
ध्यान मग्न हो अहिला गावे ।
कोकिल कण्ठ से गीत सुनावे ॥

अहिला झुक प्रणाम करत है।
देवे परिक्रमा कदम धरत है ॥
लाला सब कछु देखता जावे।
मन ही मन में ध्यान लगावे ॥
बर्बरीक ने फिर पलक लगाई।
शिव दरबार की झलक सुहाई ॥
पार्वती जी बैठीं संग में।
शिवजी बैठे भंग के रंग में ॥
गल सर्पों का हार सुहावे ।
लाला सब कछु देखता जावे ॥
त्रिशूल खड़ी है डमरू लटके।
शिवगण बैठे पीछे हट के ॥
गोदी बैठा बाल निराला ।
मानव देही सूण्ड सूण्डाला ॥
पलक मूँद कर देखे माया।
अहिला के कछु समझ न आया ॥
दूर बैठ गई मौन धार कर।
करती आरती वार वार कर ॥
लाले की ये लीला सुहाई।
प्रथम पहर समाधि लगाई ॥
भीड़ लगी है दरबार में भारी।
देव मुनि और सत व्रत धारी ॥
कर रहे स्तुति देवन आकर ।
धन्य हो रहे दर्शन पाकर ॥

दोहा
गन्धर्व सुनावें रागनी, नृत्य अप्सरा संग ।
साज सुरीले हृदय मोहने, बाजे ढोल मृदंग ।।
पर्वत पर छवि छा रही, लुभ जावे हर कोय ।
कैलाशपति की जय जय होवे, प्रबल गूँज रही होय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बर्बरीक ने जब पलक उघारी।
जै जै शिव की वाणी उचारी ॥
बहुत देर तक ध्यान लगन हो।
शिव की लीला देख मगन हो ॥
फिर माता को वचन सुनाया।
चरण पकड़ने हाथ बढ़ाया ॥
अहिला आलिंगन कर बोली ।
तुमको पाकर मैं धन्य हो ली ॥
बर्बरीक कह मन मुस्काया।
देखी मात मैं अजब ही माया ॥
था एक योगी पलक लगाये ।
जटा जूट और भभूत रमाये ॥
पर्वत पर जिसका डेरा है।
मुनियों ने आकर घेरा है ॥
वो योगी तो पलक न खोले ।
देवन गावें वो नहीं बोले ॥
कौन है माता ऐसे योगी।
महान तपस्वी सिद्ध जोगी ॥
तुम उसका हमें भेद बताओ।
पर्वत ऊपर साथ ले जाओ ॥
उस योगी का दर्शन  चाहता।
शीघ्र चलो संग मेरे माता ॥

दोहा
सुन के कहानी लाल की, छाई खुशी भरपूर ।
वो योगी तो यहीं है बेटा, हमसे नहीं हैं दूर ।।
जब चाहो तब मिल लेवो, ध्यान लगन धर धीर ।
उस योगी से बेटा अपना, जन्म जन्म का सीर ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
वो योगी शिवजी कहलाते ।
जिसकी पूजा हम कर पाते ॥
दर्शन तुमको जिसने दिया है।
उसी ने सारा भार लिया है ॥
उसी का नाम रटो मन लाकर ।
दर्शन देवेंगे खुद आकर ॥
जग के रचैया हैं त्रिपुरारी ।
दयावान भोला भण्डारी ॥
आओ अब तुम्हें और बताऊँ ।
क्षत्री धर्म की नीति सिखाऊँ
मां बेटे वन मांही आये ।
वन राजा को अति सुहाये ॥
इतने में एक नाहर आया।
भाग रहा था मन घबराया ॥
अहिला बोली सुन मेरे लाला।
इस नाहर का  बन रखवाला ॥
इसके पीछे शिकारी आवे।
वो इसको अभी मारना चाहवे ॥
भागा लाला कहाँ शिकारी।
पकड़ के लाऊँ शरण तिहारी ॥

भागा भागा दूर गया है।
शेर शिकारी ढूँढ लिया है ॥
बर्बरीक ने उसको ललकारा।
शिकारी ने धनुष-बाण सुधारा ॥
बाण पे बाण छोड़ता जावे ।
लाला पकड़ के तोड़ता जावे ॥
जब वो शिकारी थक कर हारा ।
बर्बरीक ने एक मुक्का मारा ॥
प्राण पखेरू शिकारी सोया।
एक चीख मारी और रोया ॥

दोहा
बर्बरीक ने उस बाण को, लीनो हाथ उठाय ।
टूटे तीर लिये साथ में, घसीट शिकारी लाय ।।
अहिला सन्मुख आ गई, रुक गया बली महान ।
बोला लाला ये है शिकारी, लगा लिया है ध्यान ।।

भजन
(तर्ज मारवाड़ी)

बेटा माँगे वचन थांरों मायड़री,
म्हारों साँचो कोल भराय,
सुण म्हारे दिल की बातड़ली ।। टेक ।।

बेटा क्षत्री धरम मत भूलीजे,
कमजोर नै मतना सताय ।।१।।
सुण म्हारै…

जो हार गयो, बल रूठ गयो,
वै निर्बल नै अपनाय ।।२।।
सुण म्हारै….

दुर्बल पर हाथ न उठ पावै,
दुर्बल सर हाथ धराय ।।३।।
सुण म्हारै…

भिक्षुक कोई ना खाली जावै,
चाहे देणो पड़े तन-प्राण ।।४।।
सुण म्हारै…

मैया आज्ञा तेरी सिर धारिया,
म्हारै सर पर रखदे हाथ ।।५।।
सुण म्हारै…

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥

बोली अहिला लाल नेत्र कर।
तुमने कहा मैं लाऊँ पकड़ कर
इसको तूने मार गिराया।
कैसा तुमने जोश दिखाया ॥
ये दुर्बल और निर्बल प्राणी।
गरज गरज बोली क्षत्राणी ॥
दुर्बल पर तूने हाथ उठाया।
क्षत्री धर्म को नहीं अपनाया ॥
बर्बरीक बोला विनती कर।
अहिलवती के पाँव पकड़ कर ॥
भूल हुई है मुझसे भारी ।
क्षमा करो हे मात हमारी ॥
अब नहीं ऐसी भूल करूँगा ।
तुम्हें पूछ कर कदम धरूँगा ॥
अहिला धीरज धर कर बोली।
क्षत्री धर्म की पुस्तक खोली ॥
दुर्बल पर नहीं हाथ उठाना ।
कह के वचन ना कदम हटाना ॥
भिक्षुक कोई खाली न जावे।
चाहे मांग वो प्राण ले जावे ॥
जन्म दाता की आज्ञा मानो।
जो कछु कहदे सत्य ही जानो ॥
आओ अब तुम्हें मेवा खिलाऊँ।
मीठा मीठा रस भी पिलाऊँ ॥

दोहा
माँ आज्ञा मंजूर है, चरण नवाऊँ शीश ।
दुर्बल पर नहीं हाथ उठाऊँ, अमर तेरा आशीष ।।
वचन बोलूँगा तोलकर, कहूं वही हो जाय ।
मेरे द्वार से हे मेरी माता, भिक्षुक न खाली जाय ।।

अग्निदेव से धनुष प्राप्त करना

माता के संग चल दिया लाला।
तीर कमान क्या है निराला ॥
माता इसका भेद बताओ।
कहाँ बनता है हमें समझाओ ॥
मुझको भी ऐसा दे दो लाकर ।
चतुर करो मुझको सिखला कर ॥

दोहा
समझ गई तब अहिलवती, लाला चतुर सुजान ।
प्राप्त तुम्हीं से करना चाहवे, क्षत्री धर्म का ज्ञान ।।
मेवा खिलावे चाव से, बाण नीति समझाय ।
ये श्रृंगार है क्षत्री वंश का, कन्धे शोभा पाय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती ने विनती कीनी।
अग्नि सर से प्रगट कर लीनी ॥
हाथ जोड़ कर अर्ज गुजारी ।
तुम ही लज्जा रखो हमारी ॥
तुमरा लाला मुझको  प्यारा।
मांग रहा है धनुष  बिचारा ॥
बख्शो तुम्हारा ही है यह पायक।
गर समझो कछु है यह लायक ॥
अग्नि देव ने मन्त्र उच्चारा।
कारज पूर्ण होवे तुम्हारा ॥
धनुष आ गया आसमान से।
बर्बरीक को दे दियो मान से ॥
ये धनुवा है अति शक्ति धारी।
हर पल रक्षा करे तुम्हारी ॥
जल नहीं सकता गल नहीं सकता।
इससे निशाना चूक नहीं सकता ॥ अग्निदेव फिर समझ के बोले।
इसके बाण रखते हैं भोले ॥
शिव शंकर कैलाशी वासी ।
उमापति घट घट के वासी ॥
उनके पास हैं बाण तुम्हारे ।
इतने वश का काम हमारे ॥
तुमरे हवाले कर दिया आकर ।
जाता हूँ तुम्हें सब समझाकर ॥
धनुवे को मजबूत सम्भालो ।
रोज इसे फूल माला डालो ॥
हर पल अपने पास में रखियो ।
बाण तुम्हीं शिवजी से मांगियो ॥
माता तुमरी रोज सिखावे ।
क्षत्री धर्म का बोध करावे ॥
विद्या के लिये बाण मांगता ।
असली बाण शिव पास में पाता ॥
आसमान से बाण उतारे ।
अग्निदेव देकर के  पधारे ॥
अहिलवती ने दण्डवत कीनी।
चरण की रज माथे धर लीनी ॥

दोहा
मां बेटा दोऊ चल दिये, शिव मन्दिर गये आय।
धनुष बाण धरे पास में, सेवक को बुलवाय ।।
आये नाग है दौड़कर, दिन्यो शीश नवाय।
हुक्म करो म्हारी राजकुमारी, सेवक पहुंचे आय।।

चौ०
मेरी पलकों में बसने वाले, ज्योति के तेज उजारे हो।
मेरी गोदी में चम चम चमको, देही के उजले तारे हो।
तेरा मोहना मुखड़ा देख देख, मेरी ममता लहरें लेती है।
हृदय के हियांव हिलोरा दे, ममता चुम्बन ले लेती है।

भजन
(तर्ज याद में तेरी जाग-जाग के हम)

लाल को गोद में उठाकर के,
मात अहिला यूँ प्यार करती है।
भाव हृदय के यूँ उमड़ते हैं,
लाल को बाँथ में वो भरती है ।। लाल…

लाल को पास में बिठाया है,
चाव से लाड भी लडाया है ।
वारी जाती है उसकी सूरत पे,
हाथ ममता का सिर पे धरती है ।। लाल…

मात की आँख का वो तारा है,
भीम का पुत्र ये तो प्यारा है।
उसे उस योग्य मैं बनाऊँगी,
नाज धरती भी जिसपे करती है ।। लाल…

ज्ञान देती है उसको शक्ति का,
भाव भरती है उसमें भक्ति का ।
उसे क्षत्रिय धरम सिखाती है,
अस्त्र-शस्त्रों की बात करती है ।। लाल …


अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
नाग लोक अभी हम जावेंगे।
भोर होवत ही वापस आयेंगे ॥
अमृत पीवेगो मेरो लाला ।
ममता को चमकतो उजाला ॥
सावधान पहरे पर  रहना ।
शिव की स्तुति मौज से करना ॥

सेवक ने झुक शीष नवाया।
हुक्म सभी है समझ में आया ॥
निश्चित होकर दोनों जाओ।
लाले को अमृत पिलवाओ ॥
माँ बेटे हो गये पथ गामी।
नाग लोक सब से सरनामी ॥
चलने की अब सुरत लगाई।
अहिला के मन खुशियां छाई ॥
पहुँचे नाग लोक के माहीं ।
झुक झुक करें प्रणाम सिपाही ॥

दोहा
नाग लोक डंको बज्यो, छाई खुशी अपार ।
राजकुमारी आज पधारी, संग में गोद कुमार ।।
बाशक आये दौड़कर, महलां छायो चाव ।
गोदी उठाओ दौयतो, लीनो छाती लगाय ।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
बर्बरीक ने भी पांव दबाया।
नाना नानी से स्नेह बढ़ाया ॥
सब को करे प्रणाम नमामी ।
भीम पुत्र जावे बलधारी नामी ॥
लेवें बलिहारी नाग और रानी।
वारी जावे कहती नानी ॥
फल मेवे और अनेक मिठाई।
भांति भांति के थाल सजाई ॥
  

बर्बरीक को जलपान कराया।
बाग में शिव मन्दिर दिखलाया ॥
करी है स्तुति सब ने मिलकर ।
पेड़ों ने भी संग हिल हिल कर ॥
गूँज उठी शिव शिव की वाणी।
तीनों लोक की अटल निशानी ॥
अहिलवती के अति मन भावे।
यही शिवालय याद दिलावे ॥
अम्बे माता यहाँ पधारी ।
सफल जिन्दगी करी हमारी ॥
बोला बाशक फिर रुक रुक कर ।
शिव प्रतिमा के आगे झुक कर ॥
आया दोयता आपका स्वामी।
हे शिव शंकर अन्तर्यामी ॥
जो दीन्यो आशीष कैलाशी ।
तुम्हीं निभावो हे अविनाशी ॥

दोहा
हिलमिल कर विनती करी, आयो भानजो आज ।
नाग लोक है देश तुम्हारो, तुमको इसकी लाज ।।
हम तो कछु जानें नहीं, तुम जानो सब बात ।
हम पलते हैं तुम्हरी कृपा से, रहते हरदम साथ ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती बोली मुस्काकर ।
धन्य हुई मैं यहाँ पर आकर ॥

मात पिता के दर्शन पाये।
और शिवालय मन को भाये ॥
सब सखियों से प्रणाम हमारा।
जिनके संग बचपन को गुजारा ॥
नाग देवों के चरणन लागूँ।
तुमरी गोदी से पल कर जागूँ ॥
अमृत कुण्ड पर हम जायेंगे।
लाले को अमृत पिलायेंगे ॥
देर हो रही हमको भारी।
सब सुनियो है अर्जी हमारी ॥
तुमने पाली लाड लडाई।
अब तुम से मैं हुई पराई ॥
पति की आज्ञा वहीं जाऊँगी।
पति के दर्शन वहीं पाऊँगी ॥

दोहा
अमृत कुण्ड पर चल दिये, अहिला के संग लाल ।
सुन्दर देही बदन सुहानो, घुंघराले सर बाल ।।
नाग देव सब साथ में, कर रहे जय जय कार ।
मधुर मोहिनी गूँज है उठती, छाय गई झनकार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
नाग देव मनवार हैं करते।
अमृत प्याला सब हैं भरते ॥
अहिलवती अपने हाथों से।
लाड लडावे भर बाथों से ॥
सेवक प्याला भर भर लावें ।
बर्बरीक उसे अधर लगावें ॥
माता के हाथ से अमृत पीवे।
कहे बाशक लाला जुग जुग जीवे ॥
बर्बरीक अमृत पीवै मगन हो।
आंचल के छाया की लगन हो ॥
नागलोक की अजब ही माया।
अमृत की फलती है छाया ॥
खाली कुण्ड सभी भरते हैं।
नाग देव पैदा करते हैं ॥

दोहा
अहिलवती फिर चल दई, अपने स्थाई स्थान ।
लाला संग में चल रहयो, पहुंची कोस प्रमान ।।
बीच शिवालय जाय कर, शिव को करी प्रणाम ।
माँ बेटे दोनों रट रहे, शिवशंकर को नाम ।।


भजन
(तर्ज-धरती धौरां री…)

लेकर बर्बरीक नै साथ,
पूजन करवा भोले नाथ,
शिव मंदिर में पहुँची मात,
हर बम बोले, हर बम बम बोले ।। टेक ।।

जल कलशां भर भर ल्याई,
सागै मेवा फल मिठाई,
लालै न पास बिठाई,
हर हर बम बोले,
फूलड़ा भाँत भाँत का न्यारा,
जैं का हार बणाया प्यारा,
शिव पहनै डमरू वाला,
हर हर बम बोले, हर हर बम बोले… 1۱۱۹۱۱

ज्यूँ माता करती जावै,
लालो बैनै दोहरावै,
माँ देख देख हरषावै,
हर हर बम बोले,
केशर चन्दन घोर बनाया,
पत्ता बेल का मँगाया,
भोले का ध्यान लगाया, हर हर बम बोले, हर हर बम बोले… ।।२।।

लालो जद ध्यान लगायो,
शिव गौरा दरश लखायो,
गणपत भी सागै आयो,
हर हर बम बोले,
सर्पों की पहरयाँ माला,
बाघम्बर डमरू वाला,
तन भस्मी रमाया आया,
हर हर बम बोले, हर हर बम बोले… ।।३।।

त्रिशूल हाथ में सोहे,
मस्तक पर चन्दा मोहे,
कैलाश शिखर उर जावै,
हर हर बम बोले,
जल पुष्पन हार चढ़ावै,
फल मेवा भोग लगावै,
मिल आरती शिव की गावै,
हर हर बम बोले, हर हर बम बोले… ।।४।।

मुनि नारद ज्ञान बतावै,
भक्ति का पाठ पढ़ावै,
शिव चरणां शीश झुकावै,
हर हर बम बोले,
त्रिपुरारी शिव भण्डारी,
जावै बर्बरीक बलिहारी,
प्रभु लीला रची निराली,
हर हर बम बोले, हर हर बम बोले… ।।५।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
लाले से जल कलश मंगवाया।
शिवजी को स्नान कराया ॥
झरने का जल कलश चढ़ाया।
शिव को सुरीला गीत सुनाया ॥

पूजा पाठ विधि से कीनी।
महादेव की कीनी ॥ 
सेवक हुक्म के   ताबेदारी ।
खड़े दे रहे पहरेदारी ॥
माँ बेटे वन गमन को धाये।
धनुष बाण लाले ने उठाये ॥

माता अहिलयती अपने पुत्र बर्बरीक को जंगल के बीच में ले गई और एक वृक्ष के ऊपर चढ़ कर बैठ गई, अपने पुत्र को धुनष चलाने की विद्या सिखाने लगी ।

कंधे से तुम धनुष उतारो।
दोनों हाथों से पकड़ संभारो ॥
दाहिने हाथ से तीर उठाओ।
धनुवे पर सज धज के लगाओ ॥
हाथ दाहिना पीछे रखना।
बायां आगे मोहर धरना ॥
दाहिने से धनुवे को खींचो।
ऊँगलियों से जोर कर भींचो ॥
लक्ष्य सामने नजर टिकाओ।
उसी जगह पै बाण चलाओ ॥
सावधान कहीं भूल न जाना।
निश्चय रहना कभी न डरना ॥
आज्ञा पाकर शीष नवाकर ।
बर्बरीक सम्भला धनु धारकर ॥
जैसी रीत बताई माता ।
उसी तरह से करता जाता ॥
सामने पर्वत मात दिखाया।
उस चोटी का लक्ष्य बताया ॥
        

उसके लग कर तीर फिर आवे।
पर्वत चोटी धरन गिर जावे ॥
बर्बरीक ने लिया निशाना।
जो क्षत्री के तन का बाना ॥
मारा तीर क्रोध में आकर ।
बल वैभव के जोश में आकर ॥
हुई गर्जना पत्थर उछले ।
पर्वत धुआं मुख से उबले ॥
आधा पर्वत चूर चूर हो।
पत्थर उछले दूर दूर हो ॥
गरज हुई वन डग मग डोला।
जीव जन्तु करने लगे कोल्हा
वापिस तीर दौड़ता आया।
बर्बरीक के हाथ में आया ॥
माता उछल छलाँग लगाई।
बर्बरीक के पास में आई ॥
कर आलिंगन छाती लगायो।
गोदी लेकर लाड लडायो ॥

दोहा
उस पर्वत के पास में थी, एक गुफा विशाल ।
उसमें दानव रहते काफी, लड़ते सन्मुख काल ।।
कई तो दब गये पत्थर से, घायल हुए अनेक ।
ऐसा कौन बली यहाँ आया, बाकी सब रहे देख ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥

दानव प्राणी दौड़ते आवें ।
ज़ोर ज़ोर से गरज लगावें ॥
अहिलवती ने सब कछु जाना।
सही जगह पर लगा निशाना ॥
गरज गरज कर भागे आवें।
पकड़ो कहीं ये भाग न जावें ॥
बर्बरीक तब मात से बोला।
क्या आज्ञा है यह क्या रौला ॥
माता बोली दानव आवें ।
हम दोनों को पकड़ना चाहवें ॥
धनुष सम्भालो जैसे बताया।
दानव देखो पास में आया ॥
बर्बरीक ने फिर तीर चलाया।
दानव का हृदय दहलाया ॥
अहिलवती तब गरज के भागी ।
दानव पकड़ पछाड़न लागी ॥
लाला खड़ा देखता माया।
दूजा तीर तो नहीं चलाया ॥
हमरा कोई कसूर हुआ है।
लाला मन में सोच रहा है ॥
अहिलवती विचली बन क्रोधी ।
दानव भूले अपनी सोधी ॥
जो कोई सन्मुख लड़ने आवे ।
पकड़ उसे कहीं दूर भगावे ॥
जो डरता वापिस मुड़ जावे ।
अहिलवती नहीं हाथ लगावे ॥
दानव भागे पीठ दिखा कर ।
मर गये काफी दहशत खाकर ॥

दोहा
अहिलवती लाले के पास में, आई होश संवार ।
बिना आज्ञा क्यों बाण चलाया, सन्मुख से किया वार ।।
मैंने कहा था सम्भलना, न कि तीर चलाय ।
फिर तूने क्यों तीर चलाया, अभी मुझे समझाय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
प्रथम वार दुश्मन को मौका।
ओट लेवो जब उसका झौका ॥
फिर मारो और पकड़ पछाड़ो ।
बदी करे तो जड़ से उखाड़ो ॥
पहले वार न करना लाला।
वार पे वार करत बलवाला ॥
क्षत्री धर्म की यही कहानी।
रहती उनकी अमर निशानी ॥
बर्बरीक मन में अति शर्माया ।
सत्य वचन हृदय में रमाया ॥
मात चरण में गिर गया आकर ।
वार करण की नीति पाकर ॥
अब नहीं भूल करूँ मेरी माता।
इस गलती से मैं पछताता ॥
पहले मैं नहीं वार करूँगा।
बिन आज्ञा नहीं कदम धरूँगा ॥
अहिलवती ने गोदी भर कर ।
उठा लियो लाले को पकड़ कर ॥
चलो अभी जल पान करेंगे।
शिव चरणों में शीष धरेंगे ॥
शिव को प्रणाम करेंगे जाकर ।
धन्य भाग चरण रज पाकर ॥

दोहा
सेवक बाट हैं जोह रहे, आये मात और लाल ।
मेवे थाल सजा रखे हैं, मीठे लाल गुलाल ।।
शिव मन्दिर में पहुंच कर, आय नवायो शीश ।
दया करो हे उमापति, महादेव जगदीश ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
हे शिव तूं ही रखवाला है।
बलियों मैं तूं बलवाला है ॥
तेरे समान नहीं कोई बलधारी।
हर हर महादेव त्रिपुरारी ॥
दया करो प्रभु मेवा पावो ।
रुच रुच आ के भोग लगाओ ॥
दोनों ने मिल स्तुति कीन्ही ।
शंकर की बलिहारी लीन्ही ॥
सेवक गण ने थाल सजाया।
माँ बेटे ने भोग  लगाया ॥
माँ बेटे को मेवा खिलावे ।
निर्मल जल झरने का पिलावे ॥
खावे मेवा लाल चाव से ।
धन्य हुआ आँचल की छाँव से ॥
बोली माता बात बताऊँ ।
बाण चलाना तुम्हें सिखाऊँ ॥
एक बेर ही समझाऊँगी।
दूसरी बार न बतलाऊँगी ॥
पहली सीख से समझ सुधारो ।
बार बार ये कथन हमारो ॥
बर्बरीक के समझ में आई।
अब नहीं गलती होगी माई ॥

कोशासुर राक्षस का वध
दोहा
जो दानव थे बच गये, भाजे जो अकुलाय ।
निज सरदार को कथा सुनाई, कोशासुर कहलाय ।।
एक कोस में बदन है, ऊँचा लम्ब लटाङ्ग ।।
ताड़ पेड़ सी लम्बी भुजाएं, मोटी मोटी जांघ ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
कोशासुर ने सुनी कहानी।
गरजन घोर करी अभिमानी ॥
मैं देखूंगा उस नारी को ।
पकड़ चबालूँ बलधारी को ॥
डूब मरो तुम दानव होकर ।
नार से हार मान गये रोकर ॥
डंका दे सबको बुलवाओ ।
मद पातर को खूब सजाओ ॥
देग से मोटा पातर आया ।
कोशासुर ने अधर लगाया ॥
पीकर मद्य चला अभिमानी।
संग में प्याला यही निशानी ॥
आया जहां खड़ी क्षत्राणी ।
बोला गरभी झूठी वाणी ॥
लाले को तब किया इशारा ।
बर्बरीक ने मुक्का मारा ॥
पड़ा धरण पै गरदी उछली ।
कोशासुर की नैना उबली ॥
उठा जोर किलकारी मारी।
तेज खड्ग दिया झोंक दुधारी ॥
बर्बरीक ने लात घुमाई ।
दानव की छाती पै जमाई ॥
औंधा पड़ गया दूर जाय कर।
खड़ा हो गया होश पाय कर ॥
एक पहाड़ उठा के लाया।
गरजन करके जोर घुमाया ॥
बर्बरीक ने उसे दूर भगाया।
कोशासुर मन में घबराया ॥
बर्बरीक ने टाँग पकड़ कर ।
नीचे पटका जोर जकड़ कर ॥
कोशासुर चिलाया रैंका ।
बर्बरीक ने चीर के फैंका ॥

दोहा
माता आई भाग कर, गोदी लियो उठाय ।
थापी दीन्हीं क्षत्राणी ने, लिन्यो हृदय लगाय ।।
जुग जुग जियो लाडला, अमर कहानी होय ।
सत पथ क्षत्री धर्म निभाओ, सन्मुख आवे न कोय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
माता ज्ञान देवे अति ज्ञानी।
बर्बरीक सुने चतुर सुजानी ॥
जो कोई झूठी बात निकाले ।
उसको क्षमा नहीं करना लाले ॥
आओ चलेंगे अब घूमन को।
वन में मगन होय झूमन को ॥
आगे आगे माता चलती ।
माथे तेज किरण है निकलती ॥
वन में घूमें निर्भय प्राणी ।
देती ज्ञान नीति क्षत्राणी ॥

शिवजी से तीन बाण प्राप्त करना

दोहा
शिव मन्दिर में आ गये, करते बात विचार।
माँ बेटे के पास में, बैठे पहरेदार।।
मेवा फल को खा रहे, मन में खुशी अपार। नागलोक के सेवक जग में, कभी न मार्ने हार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
शिव शंकर की आरती कीन्ही ।
अहिलवती ने दण्डवत कीन्ही ॥
विधि विधान से पूजा करके ।
परिक्रमा करी मगन हो फिरके ॥
बर्बरीक बैठा है आसन लगाये।
शिव शिव शंकर रटता जाये ॥
पलक लगाई ध्यान लगन हो।
कीनी स्तुति मन में मगन हो ॥
हे शिव शंकर तूं रखवाला ।
पुकार करे अहिला का लाला ॥
आओ आओ शिव महादेवा ।
माँ बेटे हम करेंगे सेवा ॥
सच्चा नाता तुमरा पाया।
माता जी ने ज्ञान कराया ॥
शिव जी मेरे तुम हो स्वामी।
घट घट वासी अन्तर्यामी ॥
तुम्हें पुकारूँ कारज सारो।
तुम बिन जग में कौन हमारो ॥
बर्बरीक के मन में समाई।
अखण्ड तपस्या शिव के लगाई ॥
हृदय में शिव शिव की वाणी।
दूर खड़ी देखे क्षत्राणी ॥
लाला अब नहीं पलक उघारे ।
मुख से भी नहीं शब्द पुकारे ॥

दोहा
आये सेवक दौड़ कर, अहिलवती के पास ।
बहुत देर हुई पलक लखाये, ये कैसा अभ्यास ।।
किस मधुवन में खो गया, क्यों न उघारे नैन ।
पहरेदार खड़े सोचे हैं, नहीं हृदय में चैन ।।


अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती सब समझ रही है।
सेवकगण को बता रही है ॥
ये शिव प्रेम भक्ति में खोया।
पलक लगा कर मौन ये होया ॥
तुम पहरे पर चौकस रहना ।
जो कछु बीते मुझको कहना ॥
मैं इसको नहीं छोड़ के जाऊँ ।
आसन लाला पास लगाऊँ ॥
अहिलवती ने पलक लगाई।
आओ आओ अम्बे माई ॥

तुमने जीवन दिया है माता ।
तुम ही राखो लाड का नाता॥
मेरा लाला अरज गुजारे ।
तुम बिन कारज कौन संवारे ॥
शिव के दर्शन की अभिलाषा ।
लाले को निश्चय है आशा ॥
दया करो माँ दर्श दिखाओ।
शिव शंकर को साथ में लाओ ॥
मैं तुमरी मनवार करूँगी ।
थारे चरण में शीश धरूँगी ॥
अहिलवती आवाज लगावे ।
शिव पार्वती को बुलवावे ॥
दया करो हे मात भवानी।
हे ब्रह्माणी कमला रानी ॥
अहिलवती ने पलक लगाई।
खड़े देखते चारों सिपाही ॥

दोहा
माँ बेटे दोऊ लगन में, लई तपस्या धार ।
पलक लगाई मौन होयकर, शिव शिव मन में उचार ।।
खामोशी वन छा गयी, गयो सनाटो छाय ।
जीव जन्तु सब मौन हो गये, कोई आवाज न आय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
इतने में ही बाशक आये।
अहिला को आवाज लगाये ॥
पहरेदार दौड़कर चारों आये ।
खड़े हो गये फण को झुकाये ॥
मुख से कछु ना वानी निकले ।
बाशक जी भर क्रोध में विचले ॥
क्या अनहोनी तुम पर होई ।
अहिलवती क्या नींद में सोई ॥
बर्बरीक भी कहाँ गया है।
क्या वो भी कहीं सोय गया है ॥
पहरेदार तो कुछ नहीं बोलें ।
चिन्तित हो चरणों में डोलें ॥
बाशक दौड़ शिवालय आये ।
देख के लीला मन मुस्काये ॥
ध्यान लगन में राज दुलारी ।
तुम्हें देख मुझे खुशी अपारी ॥
शिवजी यहां पर निश्चय आवें।
माँ बेटे को खुशी धीर बन्धावें ॥
शिव दरबार अभी मैं जाऊँ।
महादेव के दर्शन पाऊँ ॥
जब तुम्हें शिवजी याद करेंगे।
मेरे हृदय में प्रेम भरेंगे ॥
तब सब कुछ कह दूँगा बतियाँ ।
क्षमा करा दूँ सारी गलतियाँ ॥
बाशक जी ने उड़ान लगाई।
शिव चरणों में सुरत टिकाई ॥

दोहा
शिवजी बैठे धार कर, कई रोज का तप ।
अखण्ड तपस्या मौन धर, करते मन में जप ।।

पार्वती जी पास में, बैठी ध्यान लगाय ।
अहिलवती की मधुरी वाणी, भणकार पड़ी है आय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
माता पार्वती बात विचारे ।
अहिलवती मुझे काहे पुकारे ॥
कैसे जाऊँ छोड़ पति को ।
धर्म नष्ट होवत है सति को ॥
कौन उपाय करूँ इस बेला ।
नहीं बुलाई मुझको पहला ॥
हे अहिला तुझे क्या दुख आया।
काहे मेरा ध्यान डिगाया ॥
सोच रही थी अम्बे भवानी।
पार्वती जी कमला रानी ॥
इतने में हुई ऐसी माया ।
शंकर आसन पै नहीं पाया ॥
दूर दौड़ कर नजर घुमाई ।
नहीं कहीं शिव की परछाई
कहाँ चले गये हो त्रिपुरारी ।
पतिदेव शिवजी  तपधारी ॥
इतने में ही बाशक आया।
मात चरण में शीश नवाया ॥
कहाँ गये हैं नाथ हमारे ।
बाशक मधुर वाणी   पुकारे ॥

दोहा
पार्वती जी कह दई, अदृश्य हो गये नाथ ।
कोई भक्त पर भीड़ पड़ी है, देवन ताईं साथ ।।
शीघ्र प्रभुजी आयेंगे, जोवो आसन बाट ।
किसी भक्त के आज होवेंगे, अजब निराले ठाठ ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती के पहरेदारी ।
मन्दिर में उठ रहे सवारी ॥
माँ बेटे नहीं पलक उघारें।
पहरेदारी याही  विचारें ॥
ना कछु पीवें ना कछु खावें ।
शिवजी के नहीं भोग लगावें ॥
बैठे हैं आसन को लगाये ।
क्या कछु लीला समझ न पाये ॥
इतने में ही शंख बजे हैं।
नभ ऊपर विमान सजे हैं ॥
उन पर देव देहशत धारी ।
शंख की ध्वनियाँ आन उच्चारी ॥
प्रगट हुए शिव अन्तर्यामी ।
बर्बरीक के बन आये स्वामी ॥
पलक उघारो अहिला के लाला।
बोले शिवजी जग रखवाला ॥
बर्बरीक ने पलक उघारी ।
चरणों में लिपटा बलधारी ॥
तब बोले महादेव ये वाणी।
पलक उधारो तुम क्षत्राणी ॥
अहिला उनको जब सन्मुख पायी।
जिनको कर मनवार बुलायी ॥
शिव चरणन में लिपट क्षत्राणी ।
जय जयकार की बोली वाणी ॥

माँ बेटे ने आरती कीनी।
शिव साक्षी चरणां रज लीनी ॥
आशीष देकर शम्भू बोले ।
अन्तर के पट पलक में खोले ॥
वर मांगो कछु हम से निशानी।
हे बर्बरीक तुम हो बलवानी ॥

दोहा
बर्बरीक ने तब हाथ जोड़, कह देई मन की बात ।
धनुष दिया है अग्निदेव ने, हे त्रिलोकी नाथ ।।
बाण आपके पास में, देवो हे दयावान ।
तुमरी कृपा से मैं बन जाऊँ, बलियों में बलवान ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती ने अरज गुजारी ।
बख्शो बख्शो हे त्रिपुरारी ॥
बोले शम्भू बात कहूँगा ।
वचन भरो तो बाण देऊँगा ॥
वचन विमुख तुम हो नहीं जाना ।
सब सिद्धि ले सफलता पाना ॥
बर्बरीक बोला विनती कर।
अपने हृदय में निश्चय कर कर ॥
आपकी आज्ञा नहीं ठुकराऊँ ।
वचन लेवो मैं शीश नवाऊँ ॥
तीन बाण शिवजी ने मंगवाये।
देवन अपने शंख बजाये ॥
ये लो तीन बाण बलवानी।
जिसकी सुनाऊँ तुम्हें कहानी ॥
एक बाण से सेना सारी ।
मृत्यु शरण आवें नर नारी ॥
सब जीवों का छेदन करता।
आवे वापस बाण लपकता ॥
दो तो तुम्हारे पास बचेंगे ।
तरकस में ये खूब सजेंगे ॥
तीजा आकर ही मिल जावे।
दिग विजयी ये बाण कहावे ॥
तीन बाण तो सृष्टि छेदन ।
एक मुहूर्त में कर दे बिन्धन ॥
इनके सन्मुख कोई न आवे ।
आवे जो कोई बच न पावे ॥

दोहा
वचन सम्भालो हे बली, कहता हूं जो बात ।
शंकर बोले बर्बरीक से, मुल्लक मुल्लक कई स्यात ।।
जिस रण पक्ष में हार हो, उसका देवो साथ ।
अमर तुम्हारा नाम हो, कहलावोगे नाथ ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
अहिलवती जब सुनी ये वानी।
हार की पक्ष लेवे बलवानी ॥
समझ न आये याही कहानी।
मन में सोच रही क्षत्राणी ॥

बर्बरीक शीश नवाकर बोले।
हे शिव शंकर बम बम भोले ॥
आपकी आज्ञा पूर्ण निभाऊँ।
वचन विमुख नहीं होने पाऊँ ॥
हार की पक्ष में जाय लडूंगा।
हर ताकत के सन्मुख अडूंगा॥
आशीष दीनो है त्रिपुरारी।
बलियों में तुम हो बलकारी ॥
तुमरे सन्मुख कोई न अड़ेगा।
जगत पति भी नहीं लड़ेगा ॥
इतनी कहकर अन्तर्ध्यानी।
पहुँच गये जहाँ बैठी भवानी ॥

दोहा
शिव शंकर को देख कर, बाशक करी प्रणाम ।
पार्वती ने चरण रज लीनी, अपनी मांग में थाम ।।
कहाँ गये मेरे देवता, बिन कहे कोई बात ।
मैं भी चरणन की चेरी हूँ, तुम हो जग के नाथ ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया ।
श्याम देव की परबल छाया ॥
मुस्का कर बोले त्रिपुरारी।
हमरे जंचती बात तुम्हारी ॥
यदि कोई भक्त मुझे बुलावे ।
प्रेम विवश कर तुम्हें भुलावे ॥
जाना पड़ता हमको पल में।
चाहे नभ जल हो कोई थल में ॥
बाशक जी कछु कहना चाहवें ।
पर हृदय में अति सकुचावें ॥
मन में उथल पुथल होवत है।
अहिलवती भी बाट जोवत है ॥
पार्वती जी बात विचारें ।
बाशक बीच में कैसे उचारें ॥
बाशक खड़ा झूलता डोले ।
पार्वती से शम्भू बोले ॥
बाशक पुत्री हमरी दुलारी।
उसके जन्म लिया बलधारी ।।
उसने बुलाया तप करते को।
निडर किया जाकर डरते को।।
देव शक्त्ति बालक अवतारी ।
पहले तुमसे बात विचारी।।
धनुष तो अग्नि देव से पाया ।
बाण जाय मैंने पहुंचाया।।
इस कारण वश जाना पड़ा था।
बलवानी खड़ा बात अड़ा था ॥
बाशक जी को चैन आ गया।
खुशियों का बादल ही छा गया ॥
पार्वती जी मगन हो गई।
खुश होकर चरणों में सो गई ॥ ।

दोहा
अहिलवती पूजा करे, शिव महिमा है अपार ।
झरने का जल कलश चढ़ावे, और फूलों का हार ।।
लाला बैठा पास में, विनती में अति लीन।
तीन बाण कन्धे सजे,  बल में चतुर प्रवीण ।।

।। पंचम पाठ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
तीन बाण कन्धे पर धारी।
अहिला का लाला अवतारी ॥
शिव का भक्त है प्रेम दुलारा।
महान तपस्वी शिव का प्यारा ॥
इस जैसा कोई बल में नाहीं।
चतुर बुद्धि और भक्ति माहीं ॥
अहिलवती ने पास बैठाया।
धीरज देकर ज्ञान बताया ॥
वचन विमुख नहीं होना लाला।
चाहे सन्मुख हो रखवाला ॥
हार की पक्ष तुझे लेनी है।
शिव ने कहा वो ही करनी है ॥
अभी चलो जंगल के माहीं।
बाण सीखने घूमन ताहीं
माँ बेटे दोऊ वन में आये।
पहरेदारों को आवाज लगाये ॥
अहिलवती ने गौर किया है।
सेवक गण को बुला लिया है ॥
वापस चल दो वेग चाल से।
मत ना डरियो महाकाल से ॥
कोशासुर की सेना आई।
सेवक गण संग राङ मचाई ॥
हाहाकार हो रहा भारी ।
मारो पकड़ो की किलकारी ॥

नागदेव रण माहीं झूझे । 
बिन मालिक कोई बात न बूझे ॥
महान फौज ने घेरा डाला।
कोशासुर का आया लाला ॥
नाम खड़ेंगासुर कहलावे ।
तेज खड्ग से युद्ध रचावे ॥
बांध लिये हैं पहरेदारी।
वापस चल देई सेना सारी ॥
बर्बरीक आया बलधारी ।
गरजन करके दी ललकारी ॥
अहिलवती भी भाग के आई।
नहीं देखे हैं अपने सिपाही ॥
महाक्रोध तन में भर आया।
बर्बरीक को हुक्म  सुनाया ॥
पहरेदारों को पहले छुड़वाओ।
फिर तुम अपना बाण चलाओ ॥
वरना फौज संग पहरेदारी।
मारे जावें आज्ञाकारी ॥

दोहा
खड़ेंगासुर ने गरज करी, किसने मारा बाप ।
आओ सन्मुख काल के, चलके खुद वो आप ।।
जीवित नहीं है छोड़ता, चाहे हो महाकाल ।
क्रोध से मेरा तन उबले, मैं नहीं करता टाल ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥

बर्बरीक सन्मुख आकर बोला।
मैंने मारा क्यों करे रोला ॥
उसने झूठी वानी उचारी।
इसलिये मौत का हुआ हकदारी ॥
तू भी पहरेदारी छोड़ दे।
या मेरे संग युद्ध ओट ले ॥
खड़गासुर ने खड्ग चलाया।
बर्बरीक ने वार उकाया ॥
उछला क्षत्री वंश केसरी।
अहिला पुकारी अब क्या देरी ॥
मार मार इस दुष्ट दानव को।
फिर नहीं तंग करे मानव को ॥
बर्बरीक ने गर्दन पकड़ी।
बाहु-बल से जोर से जकड़ी ॥
आँख निकल गई खडेंगासुर की।
सुरता ला लई उसने धुर की ॥
मौत के घाट उतार दिया है।
सेवकगण को सम्भाल लिया है ॥
फिर मारा है बाण तान कर ।
लिया निशाना जोर कान कर ॥
सब दानव किलकारी मारें।
हाय मरे बस याही उचारें ॥
मौत के घाट सभी को उतारा।
वापस बाण भी आ गया प्यारा ॥

दोहा
पहरेदार चारों होश कर, झुककर करी प्रणाम ।
ये दानव थे अन्यायी, जगती में सरनाम ।।
मुनि लोग घबराय कर, नहीं आते वन मांय।
कोशासुर ही महाराजा था, अब भय कोई नांय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
समाचार सब ओर हो गया।
कोशासुर चिर नींद सो गया ॥
उस वन में कोई भय नहीं है।
माँ के संग एक बली वहीं है ॥
फत्ता गूजर अति धनवानी।
बल में भी था वो बलवानी ॥
अहिलवती के पास में आया।
प्रणाम करी और शीश नवाया ॥
आशीर्वाद दियो क्षत्राणी।
क्या चाहते हो हे बलवानी ॥
फत्ता गूजर भेद बताया।
मैं हूँ गूजर जात का जाया ॥
गऊवें मेरे पास घनेरी।
उन्हें चराऊँ उठ के सवेरी ॥
ये वन है हरियाला प्यारा।
गऊर्वे चराऊँ हुक्म तुम्हारा ॥
अहिलवती बोली मुस्का कर।
गऊर्वे चराओ निर्भय आकर ॥
क्षत्री धर्म और क्या रखता है।
गऊ ब्राह्मण की सेवा करता है ॥
इस वन में है घास घनेरा।
गऊवों का यहाँ होवे बसेरा ॥
हमको खुशी होवेगी भारी।
हर पल रक्षा करें तुम्हारी ॥

दोहा
फत्ता गूजर चल दिया, गऊ घेर के लाय ।
क्षत्राणी ने आज्ञा दीनी, मन में मगन हो जाय ।।
भोर होवत ही आ गई, गऊवें बन्धी कतार ।
हिल मिल कर गऊवें चरें, मन में खुशी अपार ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
गाय रँभावें अति सुहावें।
भर भर प्याला दूध पिलावें ॥
दूध का भोग है शिव के लगता।
बर्बरीक पी दूध है पलता ॥
अहिलवती भी भर के कटोरा ।
कहती लाला और पीवो थोरा ॥
फत्ता गूजर ग्वालों के संग।
गऊ चरावे छा रही उमंग ॥
गऊवें भी अति मग्न हुई हैं।
हरियाली के लग्न हुई हैं ॥
भर भर देग दूध की देवें।
हरी घास वन में चर लेवें ॥
बर्बरीक भी गऊएं चरावे ।
धनुष बाण कन्धे लहरावे ॥
माता बाण नीति सिखलावे।
भाज भाज कर गऊएं मुड़ावे ॥
हर पल लाले को यही कहती।
आन धर्म की तब ही रहती ॥
गऊ ब्राह्मण की सेवा करना।
और किसी से चाहे न डरना ॥
ब्राह्मण को कभी नहीं सताना।
वरना पड़ेगा लाला पछताना ॥
ब्राह्मण को नित दण्डवत करियो।
उनकी चरण रज माथे धरियो ॥

दोहा
सांझ की वेला आ गई, शिव मन्दिर गये आय ।
गऊएं अपने बछड़ों ताई, दूध पिलाने जाय ।।
शिव पूजा की लगन हो, अहिला करे अरदास ।
हाथ जोड़ कर करे आरती, बर्बरीक बैठा पास ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
नाग देव खड़े पहरेदारी ।
उनको हुक्म दिया है भारी ॥
जब तक हम पूजा करते हैं।
शिव के ताईं जल भरते हैं ॥
हमसे बात कभी नहीं करना।
पूजा विधि के बाद में कहना ॥
रात चाँदनी मोहनी आई।
हरियाली में अति सुहाई ॥
माँ बेटे दोऊ पूजा करते।
झरने का जल कलश में भरते ॥
फत्ता गूजर दूध निकाले।
भर भर बर्तन देग में डाले ॥
ग्वाले भी सब काम करत हैं।
देग में दूध निकाल भरत हैं ॥

इतने में कई डाकू आये।
भील के रूप में तीर चलाये ॥
फत्ता गूजर को ललकारा।
आज आ गया काल तुम्हारा ॥
गऊएं घेर ली भीलों ने।
जंगली मूर्ख मती हीनों ने ॥
फत्ता गूजर घायल होकर ।
चला शिवालय ओर वो रो कर ॥
हे क्षत्राणी हमें बचाओ।
गऊओं को तुम वापस लाओ ॥
डाकू बहुत बली यहाँ आये।
बहुत घनेरे बाण चलाये ॥
नाग देव बोले समझा कर ।
फत्ते गूजर को बिठला कर ॥
माँ बेटे दोऊ ध्यान लगन में।
शिव भक्ति के प्रेम मग्न में
थोड़ी देर तुम होश संवारो ।
कारज पूर्ण होय तुम्हारो ॥
अहिलवती भनकार सुनी है।
गऊ भक्ति तो सबसे जूनी है ॥
शिव प्रतिमा को पुष्प चढ़ाये ।
कर विनती और शीश नवाये ॥
बाहर आकर सुनी कहानी ।
लाल नेत्र गरजी क्षत्राणी ॥
बर्बरीक को अहिला बुलाई।
गऊ भक्ति की राग सुनाई ॥

दोहा
सुनकर वाणी मात की, आया दौड़ के पास ।
क्या आज्ञा है मेरी माता, हुक्म करो वही खास ।।
अहिला बोली क्रोध कर, डाकू गये हैं आय ।।
इस गूजर की सारी गऊएं, ले गये अभी चुराय ।।

अखण्ड ज्योत है अपार माया।
श्याम देव की परबल छाया ॥
जाओ दौड़ के घेरा डालो।
गऊओं को पंजे से निकालो ॥
बर्बरीक दौड़ चला बलवानी।
मिल गये डाकू जो अभिमानी ॥
बर्बरीक ने ललकार लगाई।
भीलों ने फिर रार मचाई ॥
सब भीलों ने बाण चलाये ।
बर्बरीक ने सब काट भगाये ॥
एक बाण छोड़ा बलवानी।
बचा नहीं कोई मानव प्राणी ॥
गऊएं घेर टोर कर लाया।
फत्ते को बड़ा आनन्द छाया ॥
माता ने शाबाशी दीनी।
लाले को गोदी भर लीनी ॥
गऊएं अपने स्थान आ गई।
ग्वालों के भी खुशी छा गई ॥

दोहा
एक रोज श्री हरित ऋषी, डेरो लगायो आय ।
संग में चेले बहुत घनेरे, मोहनी स्वर में गाय ।।
पास शिवालय आय कर, झरने का जल देख ।
यज्ञ यहीं पर हमको करना, इसमें मीन न मेख ।।

2 thoughts on “श्री श्याम अखंड ज्योति पाठ | Shri Shyam Akhand Jyoti Path”

  1. जय श्री श्याम….
    अखंड ज्योत पाठ बहुत दिनो से खोज राहा था, पर मिल ही गया। आप जो भी है…आपको सष्टांग प्रणाम करता हूं, और आपका आशीर्वाद मिले, यह कामना करता हूं। अभी मुझे पड़ने मैं बहुत सहज हो गया।
    जय श्री श्याम

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    • जय श्री श्याम 🙏
      अभी हम इस पर और काम कर रहे है, अखंड ज्योति पाठ के 7 अध्याय है, वो सभी थोड़े दिनों में यह आपको मिलेंगे ।
      धन्यवाद

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