ऋणमोचक मंगल स्तोत्र | Rin Mochak Mangal Strotam | अथ ऋणमोचनमंगलस्त्रोतम

Rin Mochank Mangal Strotam in Sanskriti Meaning | ऋणमोचक मंगल स्तोत्र पाठ करने की विधि| हिंदी अनुवाद सहित

ऋण मोचक मंगल स्त्रोत भगवान मंगल देव को प्रसन्न करने के लिए है इस स्त्रोत्र में श्री मंगल देव के समस्त 21 नामों का वर्णन है जिसके उच्चारण करने से हर तरह के कर्ज भार से मुक्ति मिलती है। जिसके ऊपर कर्ज है और आमदनी कम होने से कर्ज को नहीं चुका पा रहा है ऐसे व्यक्ति को पूरे मन और विश्वास के साथ इस का पाठ करना चाहिए। ऋण मोचक मंगल स्त्रोत का पाठ करने से ऋण से छुटकारा मिलता है।

इस ऋण मोचक मंगल स्त्रोत का जो मनुष्य पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमित रूप से वाचन करता है उसके सर पर कर्ज का भार धीरे-धीरे कम होकर समाप्त होने लगता है। मंगल का संबंध हनुमान जी से माना जाता है। श्री हनुमान जी सभी तरह की परेशानियों से छुटकारा दिलाने वाले माने गए हैं अतः इस ऋण मोचक मंगल स्त्रोत में हनुमान जी के प्रतिक मंगल देव की आराधना बताई गई है।

ऋण मोचक मंगल स्त्रोत पाठ करने की विधि | Rin Mochak Mangal Strot Path karne ki Vidhi

किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के मंगलवार का दिन चयन कीजिए। मंगलवार हनुमान जी का वार माना जाता है मंगल का दिन मुख्य होता है जो हमें कर्ज से मुक्ति दिलाता है।

सबसे पहले अपने मन में पूर्ण निष्ठा और विश्वास के साथ इस ऋण मोचक मंगल स्त्रोत के पाठ का संकल्प अपने इष्ट देवता को साक्षी मानकर के लीजिए। उसके बाद मंगलवार के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र को धारण करना चाहिए और अपने घर में पूजा घर के पास साफ जगह पर एक बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर पवन पुत्र हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित कीजिए। तत्पश्चात भगवान की प्रतिमा के आगे शुद्ध गाय के घी का दीपक करना चाहिए और साथ में मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

अथ ऋण मोचक मंगल स्त्रोत अर्थ सहित वर्णन | Rin Mochak Mangal Strotam With Meaning

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।1।।

भावार्थ: हे मंगल देव जी! शास्त्रों के अनुसार जो आपके नाम बताए गए हैं उनमें से पहला नाम मंगल, दूसरा नाम भूमिपुत्र जिसका जन्म पृथ्वी से हुआ हो, तीसरा नाम ऋण हर्ता अर्थात कर्ज को हरण करने वाले, चौथा नाम धनप्रद अर्थात धन देने वाले, पांचवा नाम स्थिरासन अर्थात अपने अपने स्थान पर अडिग रहने वाले, छठा नाम महाकाय बहुत बड़े देह वाले, सातवा नाम सर्वकामविरोधक अर्थात कार्य में आने वाली समस्त बाधाओं को हटाने वाला होता है।

 

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।2।।

भावार्थ: हे मंगल देव जी! आप के नामों में आठवां नाम लोहित, नवा नाम लोहितांग, दसवां नाम समगाना कृपाकर अर्थार्थ समस्त ब्राह्मणों के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि रखने वाले, ग्यारहवा नाम धरात्मज अर्थात पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न, बारहावा नाम कुज, तेहरवा नाम भौम, चौदहवा नाम भूतिद अर्थात ऐश्वर्य देने वाले, पंद्रवाह नाम भूमिनंदन अर्थात भूमि को आनंद देने वाले।

 

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।3।।

भावार्थ हे मंगल देव जी! आप के नामों में सोलहवां नाम अंगारक, सत्रहवा नाम यम, अठहरवा नाम सर्व रोगापहारक अर्थात समस्त रोग और व्याधियों को दूर करने वाले, उन्नीसवां नाम वृष्टिकर्ता अर्थात वर्षा करने वाले, बीसवां नाम वृष्टिहर्ता अर्थात वर्षा ना करवा करें अकाल डालने वाले, इक्कीसवां नाम सर्वकाम फलप्रद अर्थात संपूर्ण कामनाओं के फल देने वाला होता है।

 

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।4।।

भावार्थ: जो मनुष्य सच्चे मन से मंगल देव के उपर्युक्त बताए गए इक्कीस नाम का वाचन करता है, उस मनुष्य को कभी कर्ज नहीं रहता और जल्द ही धन की प्राप्ति हो जाती है।

 

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।5।।

भावार्थ: हे अंगारक, आप की उत्पत्ति पृथ्वी के गर्भ से हुई है आपकी आभा तो आकाश में कड़कने वाली बिजली के समान होती है, समस्त तरह की शक्तियों को धारण करने वाले मंगल देव को नतमस्तक होकर होकर अभिवादन करता हूं।

 

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।6।।

भावार्थ: हे मंगल देव! आपके मंगल स्त्रोत का पाठ मनुष्य को हमेशा अपने मन में किसी भी तरह का विकार ना रखते हुए, अपनी पूर्ण श्रद्धा व आस्था से नियमित रूप से करना चाहिए। जो मनुष्य इस मंगल स्त्रोत का पाठ करते हैं और दूसरों को सुनाते हैं उनको मंगल से प्राप्त विपत्ति में जरा सी भी पीड़ा नहीं होती है।

 

अङ्गारक महाभाग भगवन भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।7।।

भावार्थ: हे अंगारक अर्थात अग्नि की ज्वाला से जलने वाले, महाभाग अर्थात पूजनीय, भगवान एवं ऐश्वर्यशाली, भक्तों के प्रति वात्सल्य व प्रेम रखने वाले भौम, आपका हम नतमस्तक होकर अभिवादन करते हैं। आप हमारे ऊपर किसी दूसरे से लिया हुआ कर्जा को पूर्ण करवा कर हमें कर्ज से सदैव के लिए मुफ्त कीजिए।

 

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।8।।

भावार्थ: हे मंगल देव! आप कृपा करके मेरे ऊपर किसी और का बकाया समाप्त कीजिए, किसी भी तरह की व्याधि, पीड़ा को दूर कीजिए। मेरी गरीबी दूर कीजिए। मुझे अकाल मृत्यु से बचाइए। मुझे किसी भी तरह का क्लेश, द्वेष अथवा मन में दुख हो तो उसे हमेशा के लिए दूर कीजिए।

 

अतिवक्र दुरारार्ध्य भोगमुक्तजितत्मनम।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्ख्शणात्।।9।।

भावार्थ: हे मंगल देव! आप बहुत ही उग्र प्रकृति के हो, आप को प्रसन्न करना बहुत ही मुश्किल है, आप जब किसी पर अपनी कृपा की बारिश करते हो तो उसको समस्त तरह के सुख, समृद्धि, वैभव और सत्ता प्रदान करते हो। और आप अगर किसी पर नाराज होते हो तो उसकी समस्त वैभव को तहस-नहस करके समाप्त कर देते हो।

 

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।10।।

भावार्थ: हे मंगलदेव! आप जब किसी से प्रसन्न होते हैं तो उस पर अपनी अनुकृपा दृष्टि हटा देते हो। आपके अप्रसन्न होने पर ब्रह्मा जी, इंद्रदेव एवं विष्णु जी भी अपनी संपत्ति खो देते हैं, तो फिर मेरे जैसे मनुष्य की तो बात ही क्या है। इस तरह के शौर्य से संपन्न होने के कारण आप सबसे शक्तिशाली और सबसे बड़े राजा हो।

 

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।11।।

भावार्थ: हे मंगल देव! मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे संतान के रूप में पुत्र प्रदान करें, मैं आपके द्वार पर आया हूं आप मेरी हर मनोकामना को पूर्ण करें। मेरे ऊपर किसी भी तरह का उधार ना रहे, मुझे दूसरों के आगे हाथ फैलाना ना पड़े। और मेरे दुश्मन के डर से मुझे मुक्त कीजिए।

 

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा।।12।।

भावार्थ: जो मनुष्य इन बारह श्लोक वाले ऋण मोचक मंगल स्त्रोत से मंगल ग्रह की वंदना करते हैं, उन लोगों से भगवान मंगल खुश होकर उनको बहुत अधिक सुख, समृद्धि और संपन्नता प्रदान करते हैं। उन लोगों को भगवान कुबेर की तरह धन-संपत्ति वैभव का स्वामित्व मिलता है और अधिक आयु के भी वह युवा बने रहते हैं।

।। इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

Leave a Comment