गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक | Geeta Ji Ke 5 Shalok

।।श्रीहरि।।
नित्य पठनीय एवं कंठस्थ करने योग्य गीता जी के पांच श्लोक

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥1॥

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥2॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। 
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥3॥

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥4॥

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ॥5॥

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
॥कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

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